हमारी आज की
जीवनशैली कुछ ऐसी हो चुकी है कि, जागे
है तो सोये-सोये से और सो रहे है तो भागदौड़ की चिंता में जगे-जगे से। किसी के पास
भरपूर नींद लेने का वक्त नहीं है और कोई वक्त पर नींद ना आने से झुंझलाया हुआ है।
भले ही कहने-सुनने में यह साधारण-सी बात लगती है,
लेकिन
यह ‘स्लीपिंग डिसॉर्डर’ एक गंभीर रोग है। इसके प्रति लापरवाही बरतने का अंजाम बहुत
भारी पड़ सकता है। यह बात बहुत-से लोग आज भी नहीं जानते।
अच्छी नींद के
लिए...
नींद न आना विकराल
समस्या हो सकती है लेकिन, सौभाग्य
से यह लाइलाज बीमारी नहीं है। बहुत से ऐसे उपाय है जिससे कोई भी व्यक्ति नींद को
बुलावा दे सकता है। इनमें जो जरूरी चीजें उनमें शामिल है खुद की डाइट जांचना,
सोने
का माहौल देखना, समय,
व्यक्तिगत
आदत जीवनशैली और तत्कालिक एकाग्रता इन सब बातों में तालमेल बिठाकर बढिया नींद ली
जा सकती है। कॉफीयुक्त वस्तुओं और एल्कोहल को न कहें। दोपहर के बाद कॉफी का एकाध
प्याला लेना बुरा नहीं।
आज पूरी नींद लेने
का ऐसा संकट आ पड़ा है कि आदमी को जागे-जागे नींद के सपने आने लगे है। जी हां- नींद
के सपने? है न थोडी अजीब
बात पर यह है सच। ऐसी जीवन शैली हो चुकी है कि जागे है तो सोये-सोये से और सो रहे
है तो भागदौड़ की चिंता में जगे-जगे से किसी के पास भरपूर नींद न आने से झुझलाया
हुआ है। कैसे बुलाए नींद को और कैसे भगाए नींद को। नींद न आई तो आलस ने आ घेरा,
बहुत
आ गई तो हो गया काम तमाम। कहने-सुनने में साधारण सी बात लगती है कि मेरी नींद पूरी
नहीं होती। नींद आती नहीं या फिर मुझे में नींद आती रहती है। यह स्लीपिंग डिसॉर्डर
है। इसके प्रति लापरवाही बरतने का इतना भयानक अंजाम भी हो सकता है। यह बात
बहुत-से-लोग आज भी नहीं जानते।
क्या करें कि नींद
भरपूर ली जा सके? क्या
करें कि समय पर नींद आ जाए? क्या
करें कि हर समय अलसाए हुए से न रहें? क्या
करें कि अल्प नींद के कारण अन्य बीमारियों से बचा जा सके?
ऐसे
कई सवाल हैं जो आम शहरी जीवन में किसी के भी सामने गाहे-बगाहे खड़े हो जाते है।
नींद का एक अजीबोगरीब संसार है, एक
मनोविज्ञान है, एक वैज्ञानिक पहलू
है और एक चिकित्सकीय मनन है। शोध हुए हैं,
जानकारियां
जुटाई गई हैं। अधिक नींद आना गलत है। तो नींद न आना खतरनाक। नींद कितनी ले?
नींद
न आए तो क्या करें? इसके
बारे में समय-समय पर डॉक्टर बताते रहते है और संभवतः अमूमन हर आदमी जानता भी है कि
क्या करना चाहिए।
इलाज
जितनी जल्दी हो
सके स्लीपिंग डिसॉर्डर का एहसास होते ही अपने डॉक्टर से जांच करवा लेनी चाहिए।
इसका चेकअप कराने में रोगी को किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होती। ऐसे रोगियों
का डायनोज करने के लिए उन्हें सारी रात एयरकंडीशनर कमरे में सोते हुए अध्ययन किया जाता
है। इस कमरे को स्लीप लैब कहते है। बिस्तर पर लेटे रोगी के शरीर का संपर्क पूरी
तरह से कंप्यूटर से जुड़ा होता है। रोगी की मसल्स का बंद आंखों का दिल,
सासों
का , टांगो की हर हरकत का और
ब्लडप्रेशर आदि का जायजा लिया जाता है। इसके अलावा खर्राटों के लिए सी. पी. ए. पी.
(कंटीन्यूज पॉजीटिव एयरवेज प्रेशर) को भी चेक किया जाता है। इस पूरी जांच रिपोर्ट
पर ही इलाज निर्भर करता है। यूं तो आम इंसान को यह मानने में काफी वक्त लग जाता है
कि वह स्लीपिंग डिसॉर्डर से ग्रस्त है, लेकिन
जितना जल्दी हो सके इसे स्वीकार कर चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
पंद्रह मिनिट में
छोडे बिस्तर
विशेषज्ञ कहते है
कि यदि पूरी तरह नींद लेने का मूड बन जाए तो ही बिस्तर पर जाएं। बिस्तर पर जाने के
15 मिनिट तक नींद न आए तो
तुरंत बिस्तर छोड़ दे और खुद को कुछ देर के लिए अन्य कामों में व्यस्त रखें। सोने
का स्थान शोरगूल से दूर हो। यदि शोर हो रहा हो तो उस पर ध्यान दें। तकलीफ हो तो
आंखों में लगाए जाने वाली स्लीपिंग बैंड लगाएं,
जबरन
सोने की कोशिश न करें।
ज्यादा नींद आए
तो...
बहुत ज्यादा नींद
आने की शिकायत करने वालों के लिए विशेषज्ञ सुझातें है कि,
इस
तरह के लोगों को सुबह एक्सरसाइज जरूर करने के साथ ही,
सोते
समय भारी भोजन नहीं लेना चाहिए।