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मानसिक शांति के लिए योग-निद्रा

 

योग निद्रा का अभ्यास हर एक व्यक्ति कर सकता हैं, लेकिन गुरू के निर्देश में करने से अधिक, आनंद और उल्लास और सफलता मिलती है। इस अभ्यास से मनुष्य मानसिक शांति तथा समाधि का ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

          योग-निद्रा के दो चरण हैं। शवासन में चित्त लेट जाएं। पूरे शरीर को अच्छी तरह सीधा कर फैला लें। दोनो पैरों के बीच डेढ फीट का फासला रखें। हाथों को भी थोड़ा शरीर से दूर रखें। आंखों को भी बंद रखें, मन में विचार करें मेरा शरीर आराम से लेटा हुआ है, पूरा ध्यान लेटे हुए शरीर के ऊपर रखें। दाहिने पूरे हाथ को देखें, कल्पना करें कि दाहिना हाथ शिथिल एंव स्थिर हो गए हैं। फिर इसी तरह बायां हाथ शिथिल हो गया है। उसके बाद दाहिना पूरा पैर शिथिल स्थिर हो गए है। बाद में पूरा शरीर बिल्कुल शिथिल स्थिर हो गया है। पूरे शरीर का बार-बार विचार करते जाएं। उसके बाद अब संकल्प शक्ति को जागृत करने के लिए मन में श्रद्धा तथा विश्‍वास के साथ संकल्प करें कि-

  •  मैं आत्मा हूं, मन-शरीर नहीं हूं।
  •  मैं ईश्‍वरीय शक्ति का अंश हूं।
  •  मैं सत्, चित्त् और आनंद हूं।
  •  मैं सर्वशक्तिमान हूं, कोई भी कार्य करूंगा तो अवश्य सफल होगा।

          किसी भी शुभ-संकल्प को मन में आठ बार विश्‍वास के साथ मानसिक रूप से दोहराएं। याद रखें, योग निद्रा में किया हुआ संकल्प जल्दी सिद्ध होता है। यह योग निद्रा में किया हुआ संकल्प जल्दी सिद्ध होता है। यह योग निद्रा क्रिया का प्रथम चरण है। जागृति की, जिसमें मनुष्य जगा रहता है तथा अंदर जाने की प्रबल इच्छा प्रकट हो जाती है।

          दूसरे चरण में जब शरीर हल्का स्थिर हो जाए और शरीर में शांति का अनुभव प्राप्त होने लगे तब नासिका के अगले भाग पर मानसिक दृष्टि से देखें। दोनों नासिकाओं के द्वारा प्राणशक्ति दाहिने अंग के पैरों की ओर, प्राणशक्ति मानस द्वारा संचरण प्रारंभ करके ऊपर की ओर चलते हुए दाहिने भाग की ओर चलते जाएं। फिर बांये अंग को उसी क्रम के अनुसार ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर पूरे शरीर के एक-एक अंग में प्राणशक्ति का संचरण करें। चिंतन करें मेरा शरीर प्राणमय हो चुका है। ऐसा करने के साथ हम आनंद का अनुभव करेगें। यह अवस्था तंद्रा की है, जिसमें न तो मनुष्य पूर्णतः सोया ही रहता है और न ही पूर्णतः जागा। इस स्थिती में उसे ना सिर्फ अपने अंदर का बल्कि बाहर को भी, ऐसा दोनों ही जगहों का थोड़ा-थोड़ा पता रहता है। लेकिन इस क्रिया के द्वारा तंद्रा टूटकर आनंद का अनुभव होता है।

          अब केवल प्राण श्‍वास का ही अनुभव करना है। उस समय धीरे-धीरे मन लय होने लगता है। उस वक्त चारों ओर अंधकार रहता है। अंदर के अंधकार को देखते रहे। वह अंधकार दूर तक फैला हुआ है। इसे चिदाकाश कहते हैं, हृदय का आकाश कहते हैं।