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ध्यान रहे, मनन से खुलेगा विकास का द्वार..!


 

चिंतन व्यक्ति के जीवन में विकास के द्वार खोलता है और चिंता विकास के द्वारों को अवरूद्ध कर देती हैं। चिंता घुन है। वही चिंतन धुन। चिंतन हमारी बुद्धि को प्रखर करता है लेकिन चिंता बुद्धि को जाम कर देती है पर ऐसा लगता है चिंता हमारे साथ घुलमिल गई है, जब कभी आप अपनी सफलताओं से, अपने सुख-विकास से वंचित रह जाते हैं, तो केवल चिंता के दायरे में जिया   करते हैं।

          जैसे गेहूं को घुन भीतर ही भीतर खाकर खत्म कर देती है ऐसे ही चिंता मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है। मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो सम्पन्न हैं, जिनके पास ऐशो-आराम के सभी साधन होते हैं, पर उनके चेहरों पर मायूसी ही नजर आती है। वे या तो चिंताग्रस्त हैं या तनावग्रस्त।

          गरीब धनहीन होकर भी खुश और प्रसन्न हो सकता है, वहीं अमीर सम्पन्न होकर भी दुखी, तनावग्रस्त और चिंतातुर हो सकता है। किसी अमीर को उदास देखता हूं तो लगता है कितना अच्छा होता यह व्यक्ति सम्पत्ति का मालिक होने की बजाय शांति का मालिक हो जाता। गरीब, फुटपाथ पर भी सो रहा है, तो भी खुश है, लेकिन अमीर आदमी को सोने के लिए नींद की तीन-तीन गोलियां लेनी पड़ती है, फिर भी नींद नहीं आती। मजदूर तो फुटपाथ पर अखबार बिछाकर सो जाते हैं, वे कभी नींद की गोलियां नहीं खाया करते। स्वभाव से प्रसन्न हैं, अन्तर्हृदय में शांत हैं वे झोपडी में भी मस्ती की नींद लेते हैं। तनावग्रस्त और चिंतित आदमी अगर महल में भी सो रहा है तो ठीक से नहीं सो पाता हैं, इसलिए व्यक्ति अपने जीवन को सुखी-सफल बनाने के लिए सबसे पहले अपनी चिंता की आग बुझाए। अगर इंसान सुख-दुःख की चिंता से ऊपर उठ जाए तो वह मन की शांति का शाश्‍वत मालिक हो सकता है।