शिवांम्बु के बाह्य उपचार में शिवांम्बु मालिश यह बहुत महत्वपूर्ण और परिणामकरक उपचार है।शिवांम्बु को विशिष्ट प्रकार से संप्रुक्त करके, उससे सर्वांग को अभ्यंग के समान मालिश करे, इस शिवांम्बु मर्दन अथवा लेपन ऐसा कहते है।
मालिश के लिए शिवांम्बु बोतल में जमा करके, बोतल का ढक्कन, पक्का लगाके आठ से दस दिन धूप में रखा जाए। धूप में वह बांसी होकर मुरजाने के बाद वह अधिक संप्रुक्त होती है और उसका रंग कालासा कत्थली होता है। शिवांम्बु जितनी उतनी अच्छी होती है। ऐसी शिवांम्बु की गंध उस में स्थित अमोनिया के कारण तीव्र लगने पर उसमे थोड़ा तील का तेल और थोड़ा कपूर बारीक करके मिलाया जाए।
शिवांम्बु मालिश पैरों से सिर की और हृदय की दिशा से करनी चाहिए। हौले से, प्यार से घर्षणद्वारा शिवांम्बु लेपन और मालिश करे। व्याधिग्रस्त साधक ने हर दिन एक बार, एक घंटा सर्वांग मालिश करनी चाहिए। तो निरोगी साधक ने सप्ताह में एक बार सर्वांग को मालिश करनी चाहिए। मालिश करने के बाद तुरंत स्नान न करके, शिवांम्बु को त्वचा में मुरजाने दे। बीस से तीस मिनट सुबह की कच्ची धूप में धूपस्नान लेना चाहिए। जिससे शिवांम्बु मालिश का सूक्ष्म परिणाम गहराई तक होगा। मालिश के एक घंटे बाद ठंडे अथवा गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए। किसी भी प्रकार के साबुन का उपयोग न करें। मालिश के लिए स्वयं का मूत्र आवश्यक मात्रा में उपलब्ध नहीं होगा तो, हमारे जैसे ही सात्विक आहार लेनेवाले स्वस्थ व्यक्ति का मूत्र मालिश के लिए उपयोग करने में कोई हर्ज नहीं है। किसी भी बीमारी में स्वमूत्र मसाज आरम्भ करनेपर, पहले सप्ताह में ही असर दिखाई देता है।
*शिवांम्बु मालिश से होनेवाले फायदे*-
* रक्ताभिसरण में सुधार होता है।
* यकृत(लिव्हर) शुद्ध होता है, इसलिए रक्त शुद्ध होता है।
* शरीर के सभी अंग मजबूत होते है।
* स्नायु बलवान होते है।
* त्वचा को पोषण मिलने से वह तेजयुक्त, स्निग्ध और झुरियाविरहित रहती है।
* पैरों के धमनियों की सूजन ठीक होती है।
* ज्ञानतंतुओ को शक्ति और चपलता मिलती है।
* बच्चो का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
* वात, पित्त, कफ इनका मल त्वचा के द्वारा शरीर के बाहर निकल जाता है।
* शिवांम्बु कल्प मालिश करने से योगसिद्धि प्राप्त होती है।
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