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स्वमूत्रपान करने से पूर्व क्या उसका लॅबोरेटरी परीक्षण करना आवश्यक है ?

स्वमूत्रपान करने से पूर्व क्या उसका लॅबोरेटरी परीक्षण करना आवश्यक है ?

मानव शरीर का अन्तरंग पूर्णत: निर्जंतुक, स्टेराईल होता है। इसी कारण 95 प्रतिशत से भी जादा लोगों का मूत्र भी निर्जंतुक होता है, बॅक्टेरिया रहीत होता है। क्योंकि मूत्र किडनी में खून के द्वारा तय्यार होता है और वह बाहर आने तक किसी के संपर्क में नहीं आता। इसके अलावा मूत्र में ऐसे घटक होते हैं, जो बॅक्टेरिया को मार डालते हैं। इसी कारण प्राचीन काल से ताजा मूत्र, शरीर की चोटों को साफ करने के लिए एक अँटिसेप्टिक द्रव के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इसलिए मूत्र एक स्वयंनिश्‍चित, अँटिबायोटिक, अँटिसेप्टिक द्रव है।

               साधारणत: स्वमूत्र प्राशन करने से पहले स्वमूत्र का किसी भी लॅबोरेटरी में परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं है। पाँच प्रतिशत लोगों के मूत्र में बॅक्टेरिया हो सकते हैं। मूत्रनलिका, मूत्राशय अथवा मूत्रपिन्ड में इन्फेक्शन होने से मूत्र में बॅक्टेरिया अथवा कभी-कभी सेल्स, या मृतपेशीयाँ दिखायी देती है। साधारणत: युरिनरी ट्रॅक इन्फेक्शन के कारण जिस मूत्र में बॅक्टेरिया होते हैं, वह मूत्र मुख से प्राशन करने से कुछ भी नुकसान नहीं होता है। ऐसा देखा गया है कि, जब कोई इन्सान ऐसा मूत्र प्राशन करता है, तो वह मूत्र एक टीके के समान काम करता है। जिसके कारण बॅक्टेरिया नष्ट हो जाते हैं। अगर मूत्र में ब्लड सेल्स, पस सेल्स, अ‍ॅल्ब्युमिन जैसे तत्व पाये जातेे हैं, उसके बावजूद भी स्वमूत्रपान करने में कोई बाधा नहीं होती है। अनुभव ऐसा बताता है कि, यह सभी घटक स्वमूत्र में होकर भी स्वमूत्रपान करने से, इन  तत्वों का मूत्र में से प्रमाण धीरे-धीरे कम हो जाता है।

               अगर मूत्रपिन्ड अकार्यक्षम होता है और अगर आप के खून में युरिया और क्रिएटिनीन का प्रमाण बढता है तो शिवाम्बुपान करने से पहले तज्ज्ञों का मार्गदर्शन लेना आवश्यक है। किडनी फेल्युअर के कारण अगर हाथ, पैर और मुख पर बडी मात्रा में सूजन है, तब खून में युरिया और क्रिएटिनीन का प्रमाण देखकर ही स्वमूत्रपान का निर्णय लेना चाहिए। किडनी फेल्युअर छोडके अन्य कौन सी भी बीमारी में स्वमूत्र परीक्षण न करते हुए स्वमूत्रपान करने में कोई बाधा नहीं है।