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लोगों की पाचन – शक्ति बढ़ाता है वज़्रासन...!





वज्रासन का अर्थ है बलवान स्थिति। पाचनशक्ति, वीर्यशक्ति तथा स्नायुशक्ति देने वाला होने से यह आसन वज्रासन कहलाता है। इसका ध्यान मूलाधार चक्र में होता है और स्वस्थ दीर्घ ग्रहण किया जाता है।

आसन पर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर एड़ियों पर बैठ जाए। पैर के दोनों अंगूठे पर लग रहे। पैर के तलवों के ऊपर नितम्ब रहे। कमर और पेट बिल्कुल सीधी रहे, दोनों हाथ को कुहनियों से मोडे बिना घुटनों पर रख दे। हथेलियां नीचे की ओर रहे। दृष्टि सामने स्थिर कर दे। 5 मिनट से लेकर आधे घंटे तक वज्रासन का अभ्यास कर सकते हैं। वज्रासन लगाकर भूमि पर लेट जाने से सुप्त वज्रासन होता है।

लाभ : वज्रासन के अभ्यास से शरीर का मध्यभाग सीधा रहता है। श्वास की गतिमंद पडने से वायु बढ़ती है। आंखों की ज्योति तेज होती है। वज्रनाड़ी अर्थात वीर्यधारा नाड़ी मजबूत बनती है। वीर्य की ऊर्ध्वगति होने से शरीर वज्र जैसा बनता है। लंबे समय तक सरलता से यह आसन कर सकते हैं। इससे मन की चंचलता दूर होकर व्यक्ति स्थिर बुद्धिवाला बनता है। शरीर में रक्ताभिसरण ठीक से होकर शरीर निरोगी एवं सुंदर बनता है। भोजन के साथ इस आसन से बैठने से पाचन शक्ति तेज होती है। कब्ज दूर होता है। भोजन जल्दी हजम होता है। पेट की वायु का नाश होता है। कब्ज दूर होकर पेट के तमाम रोग नष्ट होते हैं। कमर और पैर के वायु रोग दूर होते है। स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमित जैसे रोग दूर होते हैं। शुक्रदोष,वीर्यदोष,घुटनों का दर्द आदि का नाश होता है। स्नायु पुष्ट होते हैं। स्फूर्ति बढ़ाने के लिए एवं मानसिक निराशा दूर करने के लिए यह आसन उपयोगी है। ध्यान के लिए भी यह आसन उत्तम है। इसके अभ्यास से शारीरिक स्फूर्ति एवं मानसिक प्रसन्नता प्रकट होती है। दिन प्रतिदिन शक्ति का संचय होता है, इसलिए शारीरिक बल में खूब वृद्धि होती है। काग का गिरना अर्थात गले के टांसिल्स, हड्डियों के पोल आदि स्थानों में उत्पन्न होने वाले श्वेतकण की संख्या में वृद्धि होने से आरोग्य का साम्राज्य स्थापित होता है फिर व्यक्ति बुखार व सिर दर्द से कब्ज और मंदाकिनी से या अजीम ना जैसे छोटे-मोटे किसी भी रोग से पीड़ित नहीं रहता क्योंकि लोग आरोग्य के साम्राज्य में प्रविष्ट होने का साहस ही नहीं कर पाते।