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प्राणायाम शरीर को शक्ति प्रदान करता है ..!



आज के मौसम में लोगों का झुकाव योग एवं प्राणायाम की तरफ काफी बढा है। योग गुरु स्वामी रामदेव ने जन-जन तक योग के महत्व को पहुंचा दिया है। जबसे लोगों के योग एवं प्राणायाम महत्व को जाना है। उनमें इनको जानने की एवं समझने की उत्सुकता और बढ़ गई है। यह शुभ संकेत है। स्वास्थ्य के प्रति बड़ी जागरूकता ही यह परिणाम है।

प्राणायाम श्वास – प्रश्वास की एक ऐसी प्रक्रिया है, जो शरीर को शक्ति प्रदान करती है। इड़ा, पिंगला इन तीनों में ठीक- ठीक संतुलन करके आरोग्य बल, शांति एकाग्रता और लंबी आयु प्रदान करना प्राणायाम का उद्देश्य है। इससे आमाशय, लिवर, किडनी, छोटी बड़ी आंतों और स्नायु मंडल की कार्य कुशलता बढ़ती है। परिणाम स्वरुप अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं। शरीर की रोग निरोधक शक्ति बढ़ती है और मन का सिमटाव होता है।

प्राणायाम करते समय श्वास- प्रश्वास संबंधी तीन क्रियाएं की जाती है। श्वास अंदर ग्रहण करने की क्रिया को 'पूरक', श्वास और छोड़ने की क्रिया को 'रेचक' तथा श्वास रोकने की क्रिया को 'कुंभक' कहा जाता है। 'कुंभक' भी दो प्रकार होता है। अंर्तकुंभक तथा बर्हिकुंभक। अंदर में विश्वास रोकने की क्रिया को अंर्तकुंभक और बाहर श्वास रोकने की क्रिया को बर्हिकुंभक कहा जाता है।

प्राणायाम की अपनी एक सीमा होती है। कुछ लोग प्राणायाम, को सभी लोगों की एक दवा के रूप में बताते हैं किंतु यह सत्य नहीं है। उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, चक्कर या मस्तिष्क का विकारों में भस्त्रिका, कपालभाति और मूर्छा प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

बलपूर्वक देर तक कुंभक करने या इसके साथ खिलवाड़ करने से नाड़ीयों फेफड़ों तथा हृदय को क्षति पहुँच सकती है। शीतकाल में शीतली प्राणायाम तथा ग्रीष्मकाल में सूर्यभेदन या भस्त्रिका प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

प्राणायाम के अभ्यास से पहले योगासनों का समुचित अभ्यास शरीर को लचीला बना लेना चाहिए।

सिद्धासन या पद्मासन ही प्राणायाम के लिए उत्तम आसान है। इनमें रीढ़ की हड्डी सीधी और विश्राम की स्थिति में रहती है। साथ ही इसमें कंधों का फैलाव अधिकतम रहने के कारण फेफड़े को प्राणवायु ग्रहण करने में कोई रुकावट नहीं होती है।

भोजन करने के आधे घंटे पहले या चार घंटे बाद ही प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। हल्के नाश्ते के बाद के दो घंटे बाद ही इसका अभ्यास करना उचित है। वैसे आदर्श स्थिती तो यह है कि इसके अभ्यास के समय आमाशय, बड़ी आंत और मूत्राशय खाली रखना चाहिए। इसका अभ्यास करते समय मन में किसी तरह के नकारात्मक भाव जैसे क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आदि न हों तथा मन शांत और प्रफुल्लित रहना चाहिए।

गंदे,बदबूदार, सिलनसयुक्त या बंद कमरे में प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। जहां तेज और सीधी वायु प्रवाहित हो रही हो, वहाँ भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए। जहां की वायु बहुत अधिक ठंडी हो या बहुत अधिक गर्म हो, वहाँ भी अभ्यास करना उचित नहीं ।

प्राणायाम के प्रारंभिक दौर में ही अति पर नहीं पहुँच जाना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार धीरे - धीरे फेफड़े के शक्तिशाली हो जाने पर ही अभ्यास की गति और समय बढ़ाना चाहिए। कभी भी अभ्यास के दौरान अभ्यास के दौरान बलपूर्वक श्वास-प्रश्वास की क्रिया नहीं करनी चाहिए और न ही किसी प्रकार की अनांवश्यक आवाज ही उत्पन्न करनी चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रात:काल ही होता है, जब वातावरण शांत और स्वच्छ रहता है।

प्राणायाम करते समय न तो शरीर में अकड़न रहनी चाहिए और न ही ढीलापन। शरीर में किसी प्रकार का तनाव भी नहीं रहना चाहिए। बहुत लोग पूरक एवं रेचक करते समय शरीर को बहुत अधिक हिलाते है जो किसी हालत में ठीक नहीं है। अभ्यास के समय शरीर न हिलाने पाए, इसका ध्यान अवश्य रखना चाहिए ।