लीवर शरीर में रसायनों का बाद भंडार है। यह शरीर की जरूरत के अनुसार सामग्री जुटाने, भोजन पचाने, चर्बी निर्माण तथा कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के पाचन का कार्य करना है। शरीर में रक्तशुद्धि का दायित्व भी इसी पर है। लीवर को मजबूतत तथा क्रियाशील बनने हेतु यौगिक क्रियाएं रामबाण सिद्ध होती है।
प्रारंभ पवनमुक्तसन, वज्रासन, पद्मासन तथा शशांकासन आदि से करें। कूद दिनों पश्चात सूर्य नमस्कार का अभ्यास करें। पश्चीमोत्तानासन, योगमुद्रा, हलासन, मरुदंडासन, त्रिकोणसां, धनुरासन तथा भुजंगासन आदि का अभ्यास करें। यहाँ पर विपरीत करनी मुद्रा के अभ्यास की विधि का वर्णन प्रस्तुत है –
पीठ के बल जमीन पर लेट जाइए। दोनों पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाइए। तत्पश्चात नितंब तथा कमर को ऊपर उठायें। कमर पर हाथ का सहारा देते हुए धड़ के भाग को भी ऊपर उठायें। पूरे शरीर का वजन गर्दन पर आ जाता हैं। धड़ तथा पैर को गर्दन से 60 अंश ऊपर उठाएं।इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुककर वापस आइए।
सीमाएं: उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा स्लिप डिस्क के रोगी इसका अभ्यास न करें। प्राणायाम, भस्त्रिका, सूर्यभेदी तथा नाड़ी शोधन आदि प्राणायाम लिवन के लिए बहुत उपयोगी है, इनका प्रतिदिन आधे घंटे मार्गदर्शन में अभ्यास करे। लीवर को सशक्त करने हेतु उड्डीयान बंध का अभ्यास करना चाहिए। रोज इसका अभ्यास करें।
षट्कर्म : कुंजल तथा शंखप्रक्षालय का अभ्यास मार्गदर्शन में करना चाहिए। रोग प्रतिरोधक क्षमता की प्राप्ति होती है। मानसिक एंव भावनात्मक असंतुलन लीवर को कमजोर बनाते हैं। योग नहीं के नियमित अभ्यास से तनाव का प्रभाव लीवर पर नहीं पड़ता।