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शारीरिक समस्याओं में फिजियोथैरेपी की महत्वपूर्ण भूमिका ..!!

 


    अधिकांश लोग फिजियोथैरेपी को केवल हड्डियों में फ्रैक्चर होने के संबंध संदर्भ में ही उपयोगी मानते हैं जबकि सच्चाई यहां नहीं है। आर्थोपेडिक समस्याओं के अलावा सर्वाइकल और लुंबर स्पॉन्डयलासिस, मसल्स में खिंचाव व तनाव, कंधों की जकड़न, अर्थराइटिस, डिस्क (चक्रिका) का अपने स्थान से हट जाना, जोड़ों का खिसकना, जैसे शारीरिक समस्याओं से निबटने में फिजियोथैरेपी अहम भूमिका निभाती है। फिजियोथैरेपिस्ट इन सभी समस्याओं के अलावा कई अन्य उपचार या चिकित्सा पद्धति से इलाज कर रहे मरीजों के इलाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि, फिजियोथैरेपी का चिकित्सा विज्ञान में क्या महत्वपूर्ण है।

    फिजियोथैरेपी का शाब्दिक अर्थ है भौतिक चिकित्सा। इसके तहत भौतिक उपकरणों की मदद से शारीरिक प्रक्रिया को सामान्य व दर्द रहित तो बनाया जाता है। एक फिजियोथैरेपी वास्तव में शरीर को पूर्व सामान्य स्थिति में ले आने का काम करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, एक फिजियोथैरेपिस्ट का कार्य रोगी को उस मुकाम पर ले जाना है जहां वह अपने शरीर के सभी अंगों को अपनी इच्छा के अनुसार संचालित कर सके। साथ ही खुद को फिर से समाज के महत्वपूर्ण व सक्रिय सदस्य के रूप में स्थापित कर सके। परंतु समस्या यह है कि, अक्सर ऐसे मरीज फिजियोथैरेपिस्ट के पास पहुंच ही नहीं पाते। इन मरीजों का फिजियोथैरेपी विभाग तक लाना काफी कठिन होता है। ऐसा संभवत: और फिजियोथैरेपी के बारे में लोगों में जानकारी के अभाव के कारण होता है। बहुतों को तो यह भी पता नहीं होता कि फिजियोथैरेपी है क्या ?

    फिजियोथैरेपी शरीर की तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों को ठीक करने हेतु अपनी सेवाएं प्रदान करता है। जैसे हेमीप्लेजिआ, स्नायूंओं में लकवा, साइटिका, मिर्गी आदि।

    फिजियोथैरेपी सेरेब्रल पालसीड के मरीजों के व पोलियो के मरीजों के उपचार व उनके पुनर्वास का जिम्मा उठाने वाली टीम का अभिन्न हिस्सा होता है।

    स्त्री रोगों, जैसे किडनी और पेट के आसपास सूजन आ जाना, गर्भाशय का बढ़ जाना, खासकर प्रसव पूर्व व प्रसव के बाद की विभिन्न शारीरिक समस्याओं को फिजियोथैरेपी की मदद से ठीक किया जा सकता है। इसी तरह त्वचा संबंधी समस्याओं, परेशानियों तथा त्वचा प्रत्यारोपण के निशानों को फिजियोथैरेपी द्वारा ठीक किया जा सकता है।

    छाती संबंधी रोगों में भी फिजियोथेरेपिस्ट काफी सहायक सिद्ध होता है। जब रोगी खुद ब खुद बलगम को बाहर नहीं निकाल पाता है, तो फिजियोथैरेपिस्ट अपने उपचारों द्वारा मरीजों को इस काबिल बना देता है कि, वह अपने शरीर के कफ खुद बाहर निकालने लगता है। कोमलांसड के छाती की सफाई, चेस्ट वाइब्रेशन फिजियोथैरेपी के अंतर्गत ही की जाती है। इस मर्ज के रोगियों को ऑपरेशन के पूर्व व बाद में नियमित फिजियोथैरेपी सेवाएं प्रदान की जाती है, जिसमें श्वसन संबंधी प्रमुख है।

    कुछ अन्य परिस्थितियां जिनमें फिजियोथैरेपी आवश्यकता पड़ती है। मांसपेशियों की बीमारियों जैसे मस्कुलर डाइस्ट्रोफिज, माइस्थोनिया ग्रेन्स आदि। शारीरिक विकृतियों जैसे फलन हैंड, नाक-नीक, वो-लेग समतल पांव आदि को फिजियोथैरेपी की मदद से ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा स्पाइनल विकृति को इसकी मदद से काफी हद तक सुधारा जा सकता है। यहां तक हृदय की सर्जरी के फिजियोथैरेपी द्वारा आप पुन: अपनी सामान्य जीवनचर्या के अनुरूप काम कर सकते हैं। वेरीकोज वेंस जैसी समस्याओं को भी द्वारा ठीक किया जा सकता है।

    आज उम्रदराज लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में इन लोगों के फिजियोथैरेपिस्ट के महत्व व काम को किसी भी कीमत पर कम नहीं आन्का जा सकता। मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए फिजियोथैरेपी अत्यंत लाभप्रद है। व्यायाम के द्वारा भी अपने आप को चुस्त-दुरुस्त रख सकते हैं।