किडनी की पथरी के लिए
किडनी की पथरी हो, तो तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा, शहद के साथ नियमित 6 महीने सेवन करने से पथरी, मूत्र मार्ग से बाहर निकल आती है।
पानी की शुद्धता के लिए
आदिवासी अंचलों में पानी की शुद्धता के लिए तुलसी के पत्ते जल पात्र में डाल दिए जाते है और कम से कम एक से सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा जाता है। कपड़े से पानी को छान लिया जाता है, और फिर यह पीने योग्य माना जाता है।
त्वचा संक्रमण से बचाव
औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है, जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए, तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।
झाइयां कम करने के लिए
इसकी पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलाएं, और रात को चेहरे पर लगाएं, तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है, और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
फ्लू से बचाव
फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से ठीक होता है। डांग - गुजरात में आदिवासी हर्बल जानकार फ्लू के दौरान बुखार से ग्रस्त रोगी को तुलसी और सेंधा नमक लेने की सलाह देते हैं।
दिल की बीमारी में वरदान
दिल की बीमारी में यह वरदान साबित होती है, क्योंकि यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। जिन्हें हार्ट अटैक हुआ हो, उन्हें तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। तुलसी और हल्दी के पानी का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है, और इसे कोई भी व्यक्ति सेवन कर सकता है।
थकान मिटाने के लिए
पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार तुलसी को थकान मिटाने वाली एक औषधी मानते है। इनके अनुसार अत्यधिक थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजिरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।