सर्वाइकल स्पांइडिलाइटिस नामक रोग रीढ की हड्डी के जोडों में परिवर्तन आने से होता है। कोई भी गतिविधि जो लम्बे समय तक गर्दन पर अवांछित दबाव पैदा करती है। इस स्थिति का कारण बन सकती है। पहले यह समस्या अधिकतर 50-55 वर्ष की आयु के लोगों में पाई जाती थी परंतु आजकल आपको कई ऐसे केस देखने को मिलेंगे जिनकी उम्र 35 मा इसके आसपास है। यह रोग स्त्रियों से पहले पुरूषों को घेरता है।
लक्षण
- गर्दन में दर्द (यह कंधों से लेकर बांहों में भी हो सकता है)
- कंधों की अनुभूति को अभाव मा असाधारण अनुभूति (कभी-कभी बांहों तथा टांगों में भी ऐसा हो सकता है।)
- बांहों में कमजोरी (तथा कभी-कभी टांगों में भी)
- गर्दन की कठोरता जो बढती ही जाती है।
- संतुलन न बना पाना।
- सिरदर्द, विशेषकर सिर के पिछले भाग में।
- ब्लैडर या अंतडियों पर निमंत्रण का अभाव (यदि रीढ की हड्डी सिकुड जाए।)
बचाव
- इस स्थिति से बचाव मुश्किल है परंतु आप इसके पैदा होने के जोखिम को कम कर सकते हैं।
- लम्बी ड्राइविंग, टी. वी. देखने या कंप्यूटर पर काम करने के बीच-बीच एक ब्रेक लें। लम्बे समय तक अपनी गर्दन को एक ही स्थिति में न रखें।
- कार में बैठते समय सीटबैल्ट बांधें ताकि आपकी गर्दन पर चोट लगने से बचाव रहे।
- तंबाकू का सेवन पूरी तरह बंद कर दें।
- हमेशा सही मुद्रा में बैठें।
भोजन
- जो भी हम अपनी 10 से 30 वर्ष की आयु में खाते हैं उसी से हमारी बोन डैसिटी (हड्डिमों का घनत्व) बनती है।
- मजबूत तथा स्वस्थ भोजन का सेवन करें तथा कुछ कसरत अवश्य करें।
- साथ ही प्रतिदिन 20 से 30 मिनट तक धूप में रहें।
- आपके भोजन में स्किम्ड मिल्क, हरी सब्जियां तथा फल अवश्य शामिल होने चाहिए।