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अनेक विकारों में हितकारी है धनिया।

      

धनिया में विटामिन ए तथा आयरन की बहुतता है। यह स्वाद में कसैली, स्निग्ध, सुगंधित, जामकेदार, पाचक, शीतल, मूत्रल, हल्की, चरपरी, उष्णवीर्म, जठराग्नि का दीपन करने वाली, हृदय के लिए हितकारी व रूचिवर्धक होती है। यह त्रिदोष, जलन, उल्टी, दमा, कास, कमजोरी और कृमि व्याधि का शमन करती है। कच्चे धनिमे के गुण भी धनिमा के समान हैं।

गर्मी के मौसम में हाथ-पैरों में दाह होने पर पिसा हरा धनिया बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर लें। साथ ही इसमें मूत्र की जलन भी समाप्त हो जाती है। एसिडिटी से राहत पाने के लिए सूखा अदरक तथा सूखा धनिया 25-25 ग्राम की मात्रा में कूट-पीसकर इसकी तीन मात्रा बना लें। एक कप पानी में एक मात्रा उबालें। जब एक हिस्सा पानी रह जाए, तो शहद मिलाकर दिन में तीन बार इसका सेवन करें।

दानेदार धनिये को मोटा कूटकर इसका छिलका अलग कर लें और बीजों के अंदर की गिरी निकाल लें। फिर इतनी ही मिश्री या चीनी लें। दोनों को अलग-अलग पीसकर फिर आपस में मिला लें। मूत्राशय की जलन के अलावा वीर्य की उत्तेजना दूर करने में भी यह आचूक प्रभावी मिश्रण है। पांच ग्राम की मात्रा में एक गिलास ठंडे जल के साथ इसे दिन में दो बार तीन दिन तक लें, लाभ मिलेगा।