प्राणयाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है और अतिरिक्त मेद कम हो जाता है। प्राणयाम से दिर्घ आयु की प्राप्ति होती है एवं स्मरण शक्ति का विकास होता है। मानसिक रोगों को दूर करने के लिए प्राणयाम से बढकर अन्य कोई उपाय नहीं है।
नित्य कर्म से निवृत्त होकर ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सुखसान में बैठ जायें। कमर और मेरूदंड को सीधा रखते हुए आंखों को अधखुली रखें। दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से सांस खींचे और उसे धीरे-धीरे नाभिचक्र तक ले जायें। ध्यानपूर्वक इस आसान में बैठकर सांस को खींचने (पूरक क्रिया) तथा सांस हो छोड़ने(रेचक क्रिया) के साथ ही सांस को रोकने (कुंभक क्रिया) का अभ्यास करते रहें।
इसके बाद नाक के छिद्र से सांस को बाहर निकालते रहें। सांस छोड़ने की गति एकदम होनी चाहिए। कुछ देर सांस बाहर रोकें। इसके बाद नाक के बाएं छिद्र से सांस की गति एकदम धीमी होनी चाहिए।