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प्राणयाम से दीर्घआयु और स्मरणशक्ति का विकास होता है।

 

प्राणयाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है और अतिरिक्त मेद कम हो जाता है। प्राणयाम से दिर्घ आयु की प्राप्ति होती है एवं स्मरण शक्ति का विकास होता है। मानसिक रोगों को दूर करने के लिए प्राणयाम से बढकर अन्य कोई उपाय नहीं है।

प्राणयाम से पेट, यकृत, मूत्राशय, छोटी-बडी आंते और पाचन तंत्र भलीभांति प्रभावित होते हैं और कार्यक्षम बनते हैं। इससे नाड़िया शुध्द हो जाती हैं तथा शारीरिक सुस्ती दूर होती है। जठराग्नि प्रदिप्त होकर शरीर स्वस्थ बनता हैं। मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है। वस्तुतः प्राणायाम, आत्मानंद, आत्मप्रकाश और मानसिक शांति को प्रदान करके व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से निखारता हैं। फेफड़ों का मजबूत बनाने और वायु संबंधी विकारों को दूर करने के लिए गहरी सांस लेना (डीप ब्रीदिंग) भी प्राणायाम की ही एक किस्म मानी जाती हैं। अगर प्राणायाम के माध्यम से जीवनी शक्ति की मात्रा को बढाया जाये तो न केवल रूग्णता पर ही विजय पाई जा सकती है बल्कि व्यक्तित्व को प्रखर, तेजस्वी और दिव्य शक्ति से संपन्न भी बनाया जा सकता है।

नित्य कर्म से निवृत्त होकर ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सुखसान में बैठ जायें। कमर और मेरूदंड को सीधा रखते हुए आंखों को अधखुली रखें। दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से सांस खींचे और उसे धीरे-धीरे नाभिचक्र तक ले जायें। ध्यानपूर्वक इस आसान में बैठकर सांस को खींचने (पूरक क्रिया) तथा सांस हो छोड़ने(रेचक क्रिया) के साथ ही सांस को रोकने (कुंभक क्रिया) का अभ्यास करते रहें।

इसके बाद नाक के छिद्र से सांस को बाहर निकालते रहें। सांस छोड़ने की गति एकदम होनी चाहिए। कुछ देर सांस बाहर रोकें। इसके बाद नाक के बाएं छिद्र से सांस की गति एकदम धीमी होनी चाहिए।