प्याज एक ऐसा कन्द है, जो संसार के लगभग हर कोने में पैदा होता है। प्याज जहां रसोई में पकने वाली साग-सब्जियों, दालों आदि को स्वाद प्रदान करता है, वहीं यह आयुर्वेद की दृष्टि से अनेक गुणों से भरपूर है।
प्याज में तीव्र गंध होती है और खाने वाले व्यक्ति के मुंह में इसकी गंध घंटों बनी रहती है। प्याज तमोगुण पैदा करता है और काम शक्ति को बढाता है। अतः धर्मशास्त्रों में इसका प्रयोग वर्जित है, किन्तु आयुर्वेद की दृष्टि में प्याज ऐसा कन्द है, जो औषधीय गुणों से भरपूर है तथा अनेक व्याधियों को हराता है। आयुर्वेद के मतानुसार प्याज कटु, मधुरस, विशिष्ट उष्ण, वीर्य तीक्ष्ण, स्निग्ध, रुचिकारक, बलवर्ध्दक और शुक्रजनक, सारक, पाचक, अग्निदीपक, टूटी हड्डी को जोडने वाला, स्वरशोधक, रक्त- पित्त वर्ध्दक, वायु कफ नाशक, मेधाजनक, नेत्रों के लिए हितकारी, वमन निवारक तथा अत्यंत कामोद्दीपक और रसायन है। प्याज के रस का सेवन अधिक प्रभावकारी होता है।
प्याज में गंधक, एलब्यूमेन, खांड, फास्फोरिक एसिड, साइटे्रट ऑफ लाइम, लोह, लिगनिम तथा विटामिन बी का प्रचुर मात्रा में समावेश होता है। प्याज हृदय रोग, जीर्ण-स्वर, कृमिशूल, विबन्ध, अरुचि मंदाग्नि, अजीर्ण, विसूचिका, कृमि, वायु, श्वास और कफ रोग नाशक है। उदर रोग, सर्दी, खांसी, वातशूल आदि रोगो में विशेष लाभकारी है। अतः औषधियों का प्रयोग कम और प्याज का प्रयोग अधिक से अधिक कीजिए।