मुलेठी के प्रयोग से न स़िर्फ आमाशय के विकार, बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर और छोटी आंत के प्रारंभिक भाग, 'ड्यूओडनल' के अल्सर में भी लाभ होता है। मुलेठी एक वनौषधि है, जिसका एक से छह फुट का पौधा होता है। इसका काण्ड और मूल मधुर होने से इसे, 'यष्ठिमधु' भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है।
ताजी जड, मधुर होती है। सूखने पर कुछ तिक्त एवं अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। जड को उखाडने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण बना रहता है। औषधि के रूप में अति प्राचीन काल से ही इसका उपयोग किया जाता रहा है। सुश्रुत अष्ठांगहृदय, चरक संहिता जैसे ग्रन्थों में इसके प्रयोग द्वारा चेतना लाने, उदर रोग, श्वास रोग, स्तन रोग, योनिगत रोगों को दूर करने की अनेक विधियां दी गई हैं। ईरानी चिकित्सक तो आज भी स्त्रियों की सेक्स संबंधी बीमारियों में इसका प्रयोग कर रहे हैं। ताजा मुलेठी में पचास प्रतिशत जल होता है, जो सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत ही शेष रह जाता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है।
पेट के घाव
वैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोगों द्वारा इस बात को सिध्द कर दिया है कि, मुलेठी की जड का चूर्ण पेट के घावों पर लाभकारी प्रभाव डालता है और घाव जल्दी भरने लगता है। डॉ. डी. आर. लोरेन्स की, ‘क्लीनिकल फ़ार्मेकोलॉजी’ के अनुसार मुलेठी में ग्लाइकोसाइड के अतिरिक्त ट्राइटर्पी नामक अम्ल भी होता है, जिसे ‘कार्बेनोक्लोजीन’ के नाम से एलोपैथी में प्रयोग किया जाता है। यह पदार्थ आमाशय में श्लेष्मा की मात्रा बढा देता हैं। यह प्रभाव अन्य अम्ल निरोधक एण्टासिड्स से कहीं अधिक होता है।
खून की उल्टी
खून की उल्टियां होने पर मुलेठी का चूर्ण एक से चार चम्मच की मात्रा में दूध के साथ अथवा मधु के साथ देने पर लाभ होता है। हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।