नासिका छिद्र स्नान को साधारण बोलचाल में ‘जलनेति’ भी कहा जाता है। सुबह के समय शौच आदि क्रियाओं तथा मंजन आदि करने के बाद, नाक का जो स्वर चलता हो, उसी नासिका रन्ध्र से किसी साफ़ बर्तन, बोतल, गिलास अथवा किसी टोंटी वाले बर्तन में रखें हुए जल (किसी साफ बर्तन में पानी रखकर उसमें थोडा सेंधा नमक मिलाकर गर्म कर लेते हैं। इसके बाद इसे छान देते हैं) को नाक से लेना चाहिए।
- पानी को नाक से लेते समय नाक की दूसरी ओर का छेद बंद कर लेना चाहिए। इससे जल को नाक से खीचंने में, किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती हैं।
- इस क्रिया से कुछ दिनों तक सिर के पिछले भाग में थोडी गुदगुदाहट और सनसनाहट सी रहती है, किन्तु थोडे समय में यह समस्या समाप्त हो जाती है।
- जलनेति की प्रक्रिया के अंतर्गत नाक के पहले छिद्र के बाद दूसरे छिद्र से पानी खींचना चाहिए। नाक से खींचना वाले पानी को पीना नहीं चाहिए, बल्कि उसे मुंह से बाहर निकाल देना चाहिए।
- नाक द्वारा पानी को अधिक जोर से नहीं खींचना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से सिर में दर्द हो सकता हैं। इसलिए धीरे-धीरे पानी को नाक से खींचना चाहीए।
- एक समय में लगभग 100 मि. ली. तक पानी नाक से लेकर मुंह से निकाल सकते हैं। इसे धीरे-धीरे करके एक लिटर तक ले जा सकते हैं।
लाभ
जल-नेति से आंखों की रोशनी तेज होती है तथा उसके सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। इस स्नान से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है, प्यास का अधिक लगना कम हो जाता है। इससे सर्दी-जुकाम तथा कफ़ के रोग तथा गले के सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं।
ध्यान दें
यह स्नान पीलिया, अम्लपित्त, पित्त ज्वर, पित्त प्रकोप तथा नासिका की जलन आदि रोगों में नही करना चाहिए।