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40 मिनट तक एकटक देखें, दिखेंगे आपको रचनात्मक परिणाम

 

अगर आपने चालीस मिनट अपलक किसी को देखा तो आप उसे भी अनुभव कर पाएंगे जो आपको साधारण आंख से दिखाई नहीं पड रहा हैं।

एकटक आंख को खुली रखना, संकल्प शक्ति का प्रयोग है और अगर कोई चालीस मिनट तक आंख खुली रख सकता है, तो इसके बडे रचनात्मक परिणाम होंगे। चालीस मिनट मनुष्य के मन की क्षमता का समय है। इसलिए स्कूल और कॉलेज में चालीस मिनट का पीरियड रखा जाता है। जो काम चालीस मिनट में हो सकता है पूरा, फ़िर वह कितना ही आगे किया जा सकता है। अगर आप चालीस मिनट तक आंख खुली रख सकते हैं, यह छोटा सा संकल्प पूरा हो सकता है, तो इसके बहुत जबरदस्त परिणाम होंगे।

आपके चित्त की सम्मोहित होने की क्षमता एकदम समाप्त हो जाएगी। आप फ़िर सम्मोहित नहीं किए जा सकेंगे। असल में सम्मोहित किए जाने की क्षमता आपके आंख के जल्दी झपक जाने पर निर्भर करती है। आप आसानी से मूर्छित भी नहीं हो सकेंगे। चालीस मिनट तक अपलक आंख खुली रखना, आपके भीतर की चेतना की शक्ति को, जो सोई है, उसे जगाने में बडा सहयोगी होगी। जैसे अगर चालीस मिनट तक कोई आंख बंद करके लेट जाए तो नींद आने की संभावना बढ जाती है।

आंख खुली रख लेट रहे तो नींद आने की संभावना कम हो जाती है। आखिर आंख बंद करने से नींद आने की संभावना क्यों बढ जाती है? आंख के बंद करने से बाहर का जगत बंद हो जाता है, हम भीतर ही रह जाते हैं। भीतर कोई काम न रह जाने से निद्रा के अतिरिक्त कोई काम दिखाई नहीं पडता, हम सो जाते हैं। अगर चालीस मिनट तक एकदम ही आंख को खुला रखा गया है, तो नींद की संभावना बिलकुल नहीं है, आप पूरी तरह जागरुक हो जाएंगे। एक अवेकनिंग, एक अवेयरनेस का मौका मिलेगा।

अगर आप चालीस मिनट तक अपलक किसी की ओर देख रहे हैं, तो उसके और आपके बीच एक अंतसंबंध स्थापित हो जाता है, जो वाणी से नहीं होता। जो साधारणतया आप देख रहे हैं- स्थूल, हड्डी-मांस के शरिर और देह को, अगर आपने चालीस मिनट अपलक किसी को देखा तो आप उसे भी अनुभव कर पाएंगे जो आपको साधारण आंख से दिखाई नहीं पड रहा है। और एक बार किसी भी एक व्यक्ति में वह दिखाई पड जाए जो शरीर नहीं है, उसकी झलक, उसकी आभा, भी दिखाई पड जाए, तो फ़िर आप दूसरे व्यक्तियों में भी उसे देखने में समर्थ हो जाएंगे। जो शरीर ऊपर से दिखाई पडता है, यह आदमी का खोल है। भीतर हम कुछ और हैं। लेकिन साधारण आंखो से कोई इस शरीर को ही देख पाता है। चालीस मिनट आंख का अपलक होना आपको असाधारण स्थिति में ले जाते है।

चालीस मिनट तक जिन मित्रों ने अपलक आंख खुली रखी है। उन्हें अहसास होगा कि, उनकी दोनों आंखों के मध्य के बिंदु पर बहुत जोर से दबाव पडना शुरु हो जाता है। असल में जिसे हम तीसरी आंख कहें, थर्ड आई कहें, शिवनेत्र कहें, वह भी है। लेकिन वह इस शरीर में नहीं है। जब आप इन दोनों आंखों को बिल्कुल ठहरा देते हैं, तो उस तीसरी आंख के सक्रिय होने की व्यवस्था शुरु हो जाती है। जब आंखे बिलकुल ठहर जाती हैं, तो तीसरे नेत्र पर दबाव पडना शुरु होता है और वह सक्रिय होता है। उस तीसरे नेत्र से बहुत कुछ दिखाई पडेगा, जो इन आंखों से कभी दिखाई नहीं पडता है। इसके लिए यह प्रयोग काम में आता है।