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दवा की तरह भी काम करता है मधुर संगीत

संगीत के चाहने वालों के लिए एक खुशखबरी है। शोध से पता चला है कि, हमारा मतिष्क, संगीत के प्रति ऐसी प्रतिक्रिया करता है, जैसे मानो वो कोई दवा हो। उससे, शरीर की कुछ क्रियाओं का संचालन, संदेश-ग्रहण करने वाली क्षमतावान नाडियों के तंत्र में तालमेल और मस्तिष्क में जागृती का उभार होने लगता है। सच यह है कि, पश्‍चिम में संगीत को चिकित्सा-पध्दती का आवश्यक अंग बनाने के लिए दिमागी तैयारी शुरू हो गयी है।

कोई भी इस बारे में स्पष्ट नही बता सकते है कि, संगीत कैसे हमें चिकित्सकीय लाभ देता है। पर सब इस पर सहमत है कि, हमारा मस्तिष्क किसी तरह से एक तार के जरीए संगीत पर प्रतिक्रिया करता है। न्युयॉर्क शहर के नारदोफ़-रोबिंस सेंटर फ़ॉर म्युजिक थैरपी के सह-संस्थापक, डॉक्टर ऑफ़ मेडिकल, मैटर्स क्लाइव रोबिंस इस दिशा में काफ़ी काम कर चूके है। वे कहते हैं कि, मस्तिष्क के न्युरोलॉजिकल ढांचे और मनुष्य की मांसपेशियों की कार्यप्रणाली के साथ अंतरंग रूप से संगीत का नाता है। जब शब्दहीनता का माहौल हौता है, तब भी संगीत हमारे दिमाग को उत्तेजित या जागृत करता है और कुछ शारिरिक-क्रियाओं को सुचारू कर देता है।

क्लीनिक में किए गए प्रयोगों और अन्य साक्ष्यों के मुताबिक संगीत की ध्वनी दर्द को नियंत्रिंत करती है। सर्जरी के पहले और बाद में संगीत बेहोशी लाने वाली या दर्द निवारक दवाओं की जरुरत बेहद कम कर देता है। इसके अलावा, ब्लड प्रेशर कम करता है और एकाग्रता व सृजनात्मकता को बढाता है।

बर्कले कॉलेज ऑफ़ म्युजिक की, सूजेन हैंसर का महत्त्वपूर्ण नतीजा यह है कि, कई सालों का शोध यह भी बताता है कि, संगीत से चिकित्सा का कोई तय फ़ार्मुला, मात्रा या किस्म नही है। हर एक की मनःस्थिती जिस तरह अलग है। वैसे ही कोई आदर्श संगीत चिकित्सा नही है। हावर्ड मेडिकल स्कूल के सोराल स्कूल में सोराल मेडिसन के विभाग में भी कार्यरत सूजेन का कहना है कि, संगीत से एक परिचयात्मकता, संगीत की रुचि और संगीत के एक टुकडे के साथ यादें, अहसास और संबंध ही सबसे महत्वपूर्ण होते है। कुछ शास्त्रीय संगीत के साथ तनावमुक्त होते है, तो कुछ नए जमाने की धुनों के साथ। कुंजी अपने संगीत को पहचानने और चयन करते से जुडी है।

संगीत पर हुए शोध से यह साफ़ हुआ है कि, मधुर नग्मे बेचैनी की भावना को शांत करने और अंतः ब्लडप्रेशर और दिल की धडकन की बढती दर को नियंत्रण में रखने में सफ़ल रहे हैं। एक अध्ययन बताता है कि, 61- 86 साल के लोंगो के बीच भी 20 पुरूष महिलाएं संगीत से मुड चढने और अवसाद गिराने मे अव्वल है। संगीत को सुवास बना कर अपने जीवन में उतार लेने के लिए इच्छुक लोगों को संगीत में सांस लेने की सलाह दी जाती है। अवसाद, अनिद्रा, तनाव व दर्द के दूर करने के लिए पश्‍चिम में संगीत को सच्चा साथी मान लिया गया है। क्लासिकल और नये युग के संगीत ने लागो की निद्रा संबंधी समस्याओं को तेजी से विदा कारने में बडी भूमिका निभाई है।