पिछले कुछ वर्षों से शाकाहारी अंडे, निर्जीव अंडे, अहिंसक अंडे, ऐसा प्रचार जोरशोर से चल रहा है। हमारे देश के लोग ये अंडे खाने लग जायेंगे और सारी जनता मांसाहारी हो जाये, ऐसा बदइरादा है, इस प्रचार-जाल के पीछे।
अंडों को शाकाहारी, निर्जीव व अहिंसक घोषित करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ कि, जिन मुर्गियों के द्वारा ऐसे निर्जीव व अहिंसक अंडे प्राप्त करने का तुम प्रयास करते हों, जरा इतना तो बताओ कि, उन मुर्गियों को पॉल्ट्री में तुम किस तरह रखते हो? उन्हें खाने को क्या देते हो? इन बातों को एक बार सार्वजनिक तौर पर रखें तो।
पॉल्ट्री फार्म में मुर्गियों को इस ढंग से रखा जाता है कि वे शांति से बैठ ही नहीं सकतीं। उन्हें चौबीसों घंटे लोहे की सलाखों पर बैठना पडता है। ऐसी स्थिती में हजारों मुर्गियों की चोंचे काट दी जाती है। फिर तप्त औजारों से मुर्गियों के पंख कतर दिये जाते हैं। मुर्गियों को दि जानेवाली खुराक में मछली चुर्ण डालना ही पडता है। मुर्गियों के बच्चों को पालते वक्त जो बच्चे कमजोर, अशक्त लगते हैं, उन्हें पहले ही मार दिया जाता है। लगभग दो फुट की जगह में चार मुर्गियों को रखा जाता है। एक बरस तक दिन में एक-एक के हिसाब से, मुर्गियां अंडा देती हैं। और, जब वे अंडा देना बंद कर देती हैं, तो फिर उन्हें पहूंचा दिया जाता हैं होटोलो में, जहाँ उनकी चिकन-बिरयानी बनती है और कइयों के पेट के कब्रीस्थान में दफन हो जाती है।
तुम जिन्हें अहिंसक अंडे कहते हो, उन अंडों को पैदा करने की क्रुरतापूर्ण प्रक्रिया तो घोषित करो। फिर, तुम्हें मालूम होगा कि, इन अंडों का बाजार कितना चलता है, अंडे कितने बिकते हैं?
क्रुरता के बाद बात आती है, ये अंडे, शाकाहारी है और निर्जीव। अखबारी विज्ञापनों में इन अंडों को पेड पर लटकता दिखाया जाता है। क्या तुम एक भी पेड ऐसा बता सकोगे, जिस पर अंडे फलते हों?
अंडा शाकाहारी कैसे?
बगैर मुर्गे के संयोग के पैदा होनेवाले ये अंडे, यदि निर्जीव बन जाते हों, तब तो फिर, टेस्ट ट्युब बेबी भी तुम्हारे हिसाब से निर्जीव ही गिने जायेंगे। सर जगदीशचंद्र बसु ने वनस्पति में भी जीवत्व सिद्ध कर दिखाया है। तब तो तुम्हें वनस्पती को भी मांसाहार मानना होगा।
निर्जीव कौन- जिनमें जीवत्व हो नहीं या कभी उसमें जीवत्व था, पर अब नहीं है, वह? मुर्गे के संयोग बगैर भी अंडे देने वाली मुर्गी को पिच्युटरी गलैंडस् (प्रजनन क्रिया पर असर करने वाली ग्रंथी) को कृत्रिम प्रकाश के माध्यम से उत्तेजित करना पडता है। गर्भ में अंडे का क्रमिक विकास होता है और अंडा ज्यों-ज्यों बडा बनता जाता है, त्यों-त्यों नितंब की हड्डियों में जगह बनती जाती हैं। कथित निर्जीव व सजीव अंडों के भीतर का प्रवाही, एक-सा ही होता है। खुराक में मुर्गियों को मांसाहार करवाना पडता है। इतना कराने के बाद मुर्गियां जिन अंडों को जन्म देती है, उन अंडों को सेकने के लिए वे मुर्गियां दौडती है। पर, मुर्गियां उन अंडों तक पहुंच न पायें, उसके लिए पॉल्ट्री फार्म में ढलुए, नरम पटिएकी ऐसी व्यवस्था है कि, अंडा पैदा होते ही उस पटिए पर से सीधा नीचे उतर जाये। अपनी इतनी चालाकी को लोगों के बीच रखने में हिचकिचाते क्यों हो?
जितने जोर-शोर से इन अंडों को शाकाहारी, निर्जीव, अहिंसक, घोषित किया जाता है, उतने ही जोर-शोर से सार्वजनिक तौर पर जनता के लिए पॉल्ट्री फार्म देखने की इजाजत देने जैसी घोषणा क्यों नहीं कि जाती? पॉल्ट्री फार्म उद्योग के व्यापारीयों के लिए जो मार्गदर्शिकाएँ (पुस्तके) तैयार की गयी हैं, उन्हें जनता के लिए क्यों नहीं उपलब्ध कराया जाता तथा लोगों को पॉल्ट्रीफार्म क्यों नहीं देखने देते? मुर्गीयों पर प्रक्रियाओं की जानकारी देने वाली किताबें बाहर क्यों नहीं लायी जाती?
इन सवालों का जवाब ना मिलना ही, अंडे के अहिंसक या शाकाहारी होने की बात को झुठा साबित करता है।
अंडों को शाकाहारी, निर्जीव व अहिंसक घोषित करनेवालों से मैं पूछना चाहता हूँ कि, जिन मुर्गिर्यों के द्वारा ऐसे निर्जीव व अहिंसक अंडे प्राप्त करने का तुम प्रयास करते हो, जरा इतना तो बताओं कि उन मुर्गियों को पॉल्ट्रीफार्म में किस तरह तुम रखते हो? उन्हें , खाने को क्या देते हो? इन बातों का एक बार सार्वजनिक तौर पर रखो तो।