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Significance of Dos & Don'ts in Healing - रोगों में क्या परहेज जरुरी है?

आजकल एक अजीब माहौल है, बीमारी में बस दवाई काफी है, परहेज की कोई जरूरत नहीं। लोग परहेज को व्यर्थ समझते हैं। आजकल के डॉक्टरों को भी परहेज पर कोई ज्यादा भरोसा नहीं रहा। वह अपने मरीज को परहेज में अगर कुछ बताते भी हैं, तो बस एक या दो वाक्य में - खट्टा और मसालेदार मत खाना। क्या परहेज का इतना भर ज्ञान एक डॉक्टर के लिए काफी है? आज के दौर की मेडिसीन की सबसे अहम मानी जानेवाली किताबें भी बीमारी के परहेज के बारे में लगभग खाली है।

पैगम्बर मोहम्मद (सल्ल) के कथन का भावार्थ (मफ्हूम) है, परहेज इलाज से बेहतर है (Prevention is better than cure) यह वाक्य अपने आप में चिकित्सा का एक महान सिद्धांत है जो कि अकाट्य है, बेजोड है और मानवता के लिए एक वरदान है।

हमारे पास कितना ही अच्छा इलाज क्यों न हो, लेकिन वह परहेज की बराबरी किसी भी हाल में नहीं कर सकता। इसे हम एक उदाहरण से समझते है : एक आदमी के परिचित डॉक्टर के पास घाव भरने का एक बेहतरीन मरहम है, जो कि घाव को कुछ ही घंटों में भर देता है। अब यह आदमी रास्ते में चल रहा है और रास्ते में एक काँच का नुकीला टुकडा रखा है। अब वह उस टुकडे पर यह सोचकर अपना पैर रखने के लिए आगे बढे कि मेरे डॉक्टर के पास तो उसका इलाज है, हो जाने दो जख्म। यदि हुआ तो मैं वह मरहम लगा लुंगा। अब आप इस व्यक्ति को बेवकूफ कहेंगे या अक्लमंद? यकीनन वह व्यक्ति मूर्ख है। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि परहेज या एहतियात करना, ज्ञानी होने की निशानी हैं।

आचार्य चरक (आयुर्वेद के पितामह) ने परहेज का महत्व बताने के लिए बहुत ही अच्छी बात लिखी है। उन्होंने लिखा है, ‘जो रोगी परहेज करता है, उसे इलाज की कोई आवश्यकता नहीं है और जो रोगी परहेज नहीं करता, उसे भी इलाज की कोई आवश्यकता नहीं है।’ अर्थात जो मरीज परहेज करता है वह बिना इलाज के ही ठीक हो जाएगा और जो रोगी परहेज नहीं करता, उसका कितना ही इलाज करते जाएँ वह बदपरहेजी कर-कर के फिर से बीमार हो जाएगा, इसलिए उसका इलाज करना बेकार है।

आजकल परहेज में कटौती करना एक फैशन बन गया है और डॉक्टर इसे शान की बात समझते हैं। तब चिकित्सक या डॉक्टर की आँखों में एक चमक देखते ही बनती है, जब वह मरीज से कहता है, किसी परहेज की जरूरत नहीं, सब कुछ खाओ-पियो। लेकिन डॉक्टर की आँखों की दूधिया रोशनी, सेहुण्ड (थूहर) के दूध की तरह साबित होती है, जो मरीज के पूरे शरीर को कुलबुला देती है और मरीज क्या परहेज जरूरी है? बीमारीयों के दलदल में थँसता चला जाता है।

मैं एक बार मेरे बालसखा (Childhood Friend) के केबिन में बैठा था, जो आज एक कैंसर रोगविशेषज्ञ है। वह अपने रोगी को देखता जा रहा था। रोगी उससे परहेज का पूछ रहे थे लेकिन वह उनसे कहता जा रहा था, कोई परहेज नहीं, सब कुछ खाओ-पियो।

मैंने उससे कहा, कोई परहेज नहीं? कैंसर जैसी बीमारी में यह कैसे संभव हैं? उसने कहा, हमारी दवाईयाँ इतनी असरकारक हैं कि, रोगी परहेज करे या न करे, कोई फर्क नहीं पडता।

इतने में एक मरीज (हॉजकिन्स लिम्फोमा) आया, मेरे मित्र ने पूछा कि आप तो पूरी तरह ठीक हो गए थे (किमोथैरपी के छह चक्रों के बाद) फिर वापस तबियत कैसे बिगड गई? उस रोगी के घरवालों ने कहा, डॉक्टर साहब, इन्होंने इमली की चटनी और कढी खाई थी, तब से ही गठाने बढ गई।

मैंने अपने दोस्त से कहा, परहेज के बिना इलाज अधूरा ही रहेगा। रोगी या परिजन हमेशा यह समझते हैं कि, परहेज दवाई का होता है, जबकि यह बहुत बडी गलतफहमी है। परहेज बीमारी का होता है, न कि दवाई का। जैसे: हाई ब्लड प्रेशर का रोगी किसी भी पैथी की दवाई खाए, अगर वह नमक की मात्रा खाने में ज्यादा लेगा तो उसका बी. पी. नियंत्रित करना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। अगर पथरी का मरीज कैल्शियम से भरपूर आहार लेगा, तो उसकी पथरी बढती ही जाएगी। क्या मुँह में कैंसर होने पर, कोई रोगी पान-गुटखा खाना बंद नहीं करे तो उसका रोग ठीक हो सकता है? क्या हाई कोलेस्ट्रॉल की वजह से हृदय की नसे हुई हो, तो उस रोगी का ब्लॉकेज इस हालत में खुल सकता है, जो तेल-घी और मिठाइयाँ भरपेट खा राह हो? नहीं ना, तो स्पष्ट है कि, परहेज के बिना इलाज अधुरा ही रहेगा।

क्या अब भी आप परहेज को बेवजह या फालतु समझते हैं? नहीं ना! तो आइए हम विभिन्न रोगों के परहेज को जानें। यह भी जानें कि, किस रोग में क्या लाभदायक है, जिसे हमें अधिक से अधिक ग्रहण करना है और क्या हानिकारक हैं, जिसे हमें त्यागना है।

गैस
खाना धीरे-धीरे एवं अच्छी प्रकार से चबाकर खाएँ, खाना खाने के तुरंत बाद पानी न पिएँ, मुँह से साँस नहीं लें।
हानिकारक : आलु, बैंगल, अंडा, नॉनवेज, फास्टफुड, कोल्ड ड्रिंक्स, चाय, कचौडी-समोसा, धूम्रपान, पान-मसाला, शराब, दूध, टमाटर, मटर, गोभी, दालें, कच्ची सब्जियाँ, सलाद, मसालेदार भोजन, अनावश्यक अंग्रेजी दवाइयों का सेवन।

लाभदायक : हींग, ईसबगोल, मूँग की दाल, चावल, लहसून, जीरा, अजवाइन, सौंफ।

पेट के छाले एवं एसिडिटी
लाभदायक : पुराना चावल, गेहूँ, जौ, मूँग, करेला, लौकी, बथुआ, अनार, आँवला, खीरा, ककडी, परवल, तोरई, गिलकी, गाय या बकरी का दूध, मिश्री, उबालकर ठंडा किया हुआ पानी, शहद, सत्तु, घी, सलाद।
छायादार दरख्तों या पेडों के नीचे बैठना या सोना, सुबह-शाम पैदल चलना, महीने में एक बार दस्तावर दवाओं से पेट साफ करना।

हानिकारक : खटाई, नमक, तेज मिर्च-मसाला, भारी भोजन, तिल, उडद, कुलथी, तली हुई चीजें, भेड का दूध, मसूर, पानी, चिप्स, नूडल्स, फास्टफूड, कचौडी-समोसा, तेल।

धूप में घूमना, खाने के बाद तुरंत पानी पीना, खाना खाने के बाद सो जाना, उल्टी रोकने के लिए या एसिडीटी की गोलियाँ खाते रहना, अंग्रेजी दवाओं का अत्याधिक सेवन- विशेषतः दर्द निवारक एवं ऐंटीबायोटिक्स, मल-मूत्र एवं गैस को रोकना, टेंशन लेना।

कब्ज
लाभदायक : हरी सब्जियाँ, सलाद, फल, पानी, ईसबगोल, उडद की दाल, दही, अदरक, पपीता।

रात को सोते समय दूध में घी मिलाकर पिएँ, सुबह, पानी में भीगे हुए अंजीर और मुनक्का खाएँ, सुबह उठकर बहुत सारा गुनगुना पानी पिएँ, नाश्ता करें, थोडी देर टहलें, फिर टॉयलेट जाएँ। टॉयलेट या शौचालय शांत जगह पर हो, वहाँ ज्यादा भीड न हो, किसी किस्म की जल्दी न हो।

हानिकारक : सेब, केला, आलू, मैदे से बने पदार्थ, कचौडी, समोसा, चॉकलेट, आइस्क्रीम, कोल्ड ड्रिंक, फ्रीज का थंडा पानी, बर्फ, नशे की वस्तुएँ, धुम्रपान।
पेट दर्द, सिर दर्द, ब्लडप्रेशर, एसिडीटी आदि के लिए ली जानेवाली दवाओं से कब्ज होता है। आयरन, कैल्शियम, एल्युमीनियम, हाइड्रोक्साइड युक्त दवाएँ कब्ज करती है।

बवासीर (पाइल्स)
लाभदायक : पपीता, अमरूद, सलाद, हरी सब्जियां, मुनक्का, अंजीर और मुनक्का को रात में भिगोकर रोज सुबह खाएँ, घी, मट्ठा (मही), गुनगुना पानी, चलना या दौडना।

हानिकारक : कटहल, नॉनवेज, अंडा, अचार, कॉफी, मैदे के पदार्थ, ज्यादा तली-भुनी चीजें, सेब, चना, उडद, चावल, कचौडी-समोसे, गुड, आम, हलवा।
जोर लगाकर शौच करना, रात में जागना, दिन में सोना, मैथुन , मल-मूत्र को रोकना।

इसलिए परहेज का महत्व समझकर, उपर दि गई जानकारी का अपनी बीमारी के अनुसार, अपने चिकित्सक के मार्गदर्शन में, आवश्यक दवाईयों के साथ, सही उपयोग करना, आपकी सेहत तंदुरूस्त करने में मददगार साबित होगा।