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Mariyada Purushopttam Ram - मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम

 

धैर्य अपने आप में एक प्रसाद है, मनुष्य को दिया हुआ। पहला पत्थर, दशरथ मांजी ने जब पर्वतपर मारा तो लोग उसपर हसें, लेकिन उसने धैर्यपूर्वक बीसा साल पत्थर मारा, तो पहाड को रास्ता छोडकर खडा होना पडा की, तु आदमी है, तु जीत गया। धीरज का जीवन में बडा महत्व है। जो धैर्य रख पाते हैं, वही देर-सवेर सफल हो जाते हैं।

राम का धैर्य देखिए, राम का धैर्य, विष्णू का धैर्य नहीं है। मुझे क्षमा करें, भगवान है विष्णू, लेकिन वो तटस्थ धैर्य है। आराम से लेटे हुए है, क्षीरसागर में, शैया बना के प्रेम पूर्वक। माता लक्ष्मी पैर दबा रही हैं, उपर से शेष नाग का फण है, देख रहे हैं, दुनिया में चल क्या रहा है, मूर्ख कर क्या रहे हैं? हो क्या नाटक रहा है? राम का धैर्य तो जीवित रहते हुए, उसी व्यवस्था का धैर्य है। राम को छेडने की एक हरकत दुनिया ने नहीं छोडी, पुत्र के रूप में। सोचिए, वो लडका कैसा होगा, वो व्यक्ति कैसा होगा? जिसका राज्याभिषेक होने जा रहा है और एक तरफ पता चले की, वन चलो। कितना कठीन समय, लेकिन राम, ‘राज्याभिषेक होगा, मैं राजा बनुंगा’, इसपर प्रसन्न नहीं है, और ‘मुझे वनवास मिल गया’ इसपर दुखी भी नहीं है, ‘यही राम है! यही राम होना है!’

लोग समझते हैं, जंगल में पोस्टींग, लोग समझते हैं, कोने में पोस्टींग, लोग समझते हैं, वहां काम करना हैं तो कैसे काम होगा? मेरे लिए तो पनिशमेंट हो गया, यही अवसर है, जो आपको ईश्‍वर दे रहा है। दशरथ के पुत्र राम जब तक आयोध्या में रहें, युवराज राम कहलायें, श्री राम कहलायें और जब जंगल जाकर लौटे तो , ‘मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम’ कहलायें। इस पूरी यात्रा ने, उन्हें भगवान बनाया। इस धैर्य ने उन्हें, भगवान बनाया। और अद्भूत धैर्य है उनके पास, उनका अपमान करके कोई चला जाता है, वो धैर्य के साथ मुस्कुराते रहते हैं। उनकी पत्नी का हरण हो जाता है, उसके बाद भी वे धैर्य पूर्वक पूरी व्यवस्था करते हैं। और एक बात सोचना आप सब, मैं अक्सर इस बात से बहोत अंदर तक थ्रील रहता हूं, राम आयोध्या से चले, उस समय का सबसे बडा खानदान था वो, हिंदूस्थान में जो कुछ भी पडा था, उन्हीं के यहां पैदा हुआ था। द्विक्षाकु, अज, रघु, इलीब, पुरर्वा, यथाती, नहुश, दशरथ, सब बडे आदमियों ने किया। भारत का नाम जिनपर रखा गया वे भी उन्ही के यहां पर पैदा हुए,भरत! सब उन्ही के यहां पैदा हुए। लेकिन उसके बाद भी राम सिर्फ एक वलकल पहनकर चले, तो रास्तेभर में राजाओं को भी पता चला होगा की, दशरथ का लडका जा रहा है, वो भी तो मिलने आना चाहते होंगे, राम, उनसे सहायता भी ले सकते थे। जिस पंचवटी में माँ सीता का हरण हुआ था, वो तो उनके नंदसाल के बिलकुल बगल में हैं, कौशल प्रदेश में, रायपूर में। वे बिलकुल बगल में थे, वो अपने नाना से कह सकते थे, अपने मामा से कह सकते थे, आप मेरी जरा सहायत करो, मेरी पत्नी का अपहरण हो गया है, जरा सेना दे दो, मैं जरा चलुंगा। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक भी राजा को अपने साथ में नहीं लिया। उन्होंने रास्तेभर आप जैसे और हम जैसे लोगों को साथ में लिया। किनको? सामान्य को, वंचितों को, दलितों को, उन्होंने वनवासीयों को साथ में लिया। उन्होंने मल्लाहो को साथ में लिया। उन्होंने माँ शबरी का आशिर्वाद लिया, उन्होंने केवट को साथ में लिया, उन्होंने वंचित सुग्रीव को गले लगाया। क्योंकि वह जानते थे की, जिस अनाचार से वे लडने जा रहे हैं, वहां धनिकों की, राजाओं की नहीं,सदाचार की आवश्यकता है। वहां आत्मबल की आवश्यकता है। तो राम का यह धैर्य ही हैं, जो उन्हें विजेता बनाता है। रावण को बाली हरा चुका था पहले। आपने कहानी सुनी होगी, रावण को तो शेसबाहू भी हरा चुका था। रावण कोई ऐसा अर्जेंटिना, ऐसा ब्राझील नहीं था, जिसको हराना मुश्किल था, उसको तो हरा चुके थे ये दोनो। बाली ने तो उसको अपनी बगल में दबाकर, किले के चक्कर लगायें थे। जब हनुमान को बांधा था, तब हनुमान से रावण ने कहां, तु मुझे जानता नहीं, मैं कौन हूँ? तो हनुमान ने क्या कहां? ‘हां, जानता हूं, मैंने सुना था, वो बाली वाली आपकी लडाई के बारे में। परीचय है मेरा आपसे।’ हनुमान नें क्यों कहा था? क्योंकी उसका कॉन्फीडन्स लुज हो।

लेकिन भगवान राम जब बाली और सुग्रीव के जनपथ पर पहुंचे तो, उन्होंने बाली का साथ नहीं दिया। उन्होंने वंचित सुग्रीव को चुना। वो उसके साथ खडे हुए, जिसका अधिकार छिना गया, जिसका राज्य छिना गया, जिसकी पत्नी तारा का अपहरण किया गया, और उन्होंने बाली का वध किया, जब की बाली भी उनका प्रशंसक था, उनका भक्त था। मरते समय, बाण लगने के बाद, प्रणाम की मुद्रा में, बाली ने पुछा है भगवान से, ‘मैं बैरी, सुग्रीव पिआरा, अवगुण कौनत मुई मारा।’ - मैं बैरी हो गया, सुग्रीव आपका प्यारा हो गया, मुझ में ऐसा कौनसा अवगुण था जो, मुझे मार दिया। तो भगवान राम ने उसे उत्तर दिया, ‘अनुज वधु भगीनी, सुत नारी,- छोटे भाई की  पत्नी, भगीनी, बहन, बेटे की पत्नी, सुन सट, कन्या सम येचारी। ये मुर्ख ये चारों बेटी के बराबर होती है, इन्हें उदष्टी बिले लोये, इन्हें गंदी दृष्टी से जो देखता है, उसका वध करने में पुण्य मिलता है, पाप नहीं होता है।’ अगर भगवान राम की विजय अपने लिए होती, अगर उनके पास धैर्य न होता तो, वे बाली को लेकर चल लेते, बाली हरा चुका था रावण को, लेकिन उन्होंने कहा, ‘बाली नहीं, नहीं, तु नहीं, तु नालायक है, तुने छोटे भाई को मारा है, उसकी पत्नी का हरण किया है, मैं तेरा तो वध करूंगा। ये वंचित है, इसे लेकर चलुंगा।’

राम का धैर्य अद्भूत है। राम की लिडशीप क्वालीटी अद्भूत है। राम ऐसे ही राम नहीं बने। राम जैसा लिडर कही नहीं है। वो उस व्यक्ति की क्वालीटी को डेव्हलप करते हैं, उन्हें इन्स्ट्रक्ट नहीं करते। उन्होंने सुग्रीव की क्वालीटी को डेव्हलप किया। एक ऐसा डिप्रेस आदमी, जिसके पत्नी का हरण हो गया, जिसका राज्य छिन लीया गया, भाई ने लाथ मारकर भगा दिया, उसको उन्होने कल्टीवेट किया और सुग्रीव महारथी के रूप में बना और उस युद्ध में सुग्रीव की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

जिस समय हनुमान लंका के लिये रवाना हुये, आप रामचरीत मानस पढीये, आध्यात्म रामायण पढीये, श्रीमत वाल्मीकी रामायण पढीये, कम्मत की रामायण पढीये, कही नहीं लिखा की, भगवान राम ने हनुमान से क्या कहां की, तुम क्या करना? आज हम कितने फ्रस्टेटेड है? आज हम लिडरशीप डेव्हलपमेंट की बात करते हैं, ड्रायव्हर को एक जगहपर भेजते हैं, सामान लेने के लिये, उस बीच पाच बार बताते हैं उसे,क्योंकी हमें भरोसा नहीं है उसपर, हम उसकी लिडरशीप डेव्हलप नहीं होने देना चाहते। राम लीडरशीप डेव्हलप करते है। राम ने हनुमान को नहीं बताया की तुम्हें वहां जाकर क्या करना है, उन्होंने बस कहां, ‘जाकर देखकर आओ की, सीता कैसी है? कहां हैं? और उन्हें आश्‍वस्त कर के आओ की, मैं आऊंगा।’ दो बातें, इसके बाद का जो घटनाक्रम हैं, छोटा सा रूप बनाना, अंदर जाना, लंकीनी को मारना, माँ सीता को वो मुद्रिका देना, फल खाना, खुद ही गिरफ्तार हो जाना, आग लगा देना, आग लगा देना मतलब, वो भगवान राम का व्हीजीटींग कार्ड देकर आये थे। याने बताकर आये वो की, जो आ रहे हैं, हम उनका व्हीजीटींग कार्ड है। मॅनेजमेंट का बेस्ट उदाहरण है, हनुमान। एम्प्लॉयर का एक रूपया खर्च नहीं कराते वो, एक पैसा भी नहीं। 
भगवान ने कहां वहां जाकर आओ, खुद ही टेकऑफ, खुद ही लँडींग। और सारा पैसा रावण का। हनुमान जबरदस्ती ही गिरफ्तार हो गये थे, स्वयं ये देखने के लिये की कौन है? तो कहां गया की, ‘वानर को पुंछ से बहोत प्यार होता है, इसकी पुंछ पर कपडा बांध दो। कपडा किसका? रावण का, बोले इसपर तेल लगाओ, तेल किसका? रावण का, जली किस की?......लंका रावण की।’ यह है बेस्ट एम्प्लॉइ। सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति। कोई ना-नुकार नहीं। भगवान राम के जीवन में दो कठीन समय आयें, तो दोनों में हनुमान ने ही पार लगाया। उनसे कहां गया, देखो मेरा भाई लक्ष्मण बीमार है। सोचो राम पर क्या बीती होगी? भगवान राम के जीवन में सबसे कठीण रात वो है जब, उनके भाई लक्ष्मण को मुर्च्छा आई थी। उस रात राम कितने भी ईश्वर हो, मनुष्य रूप में जी रहे थे, मन में ये बात तो आई होगी की, आयोध्या जाकर क्या कहूंगा? पत्नी कहां हैं? अपहरण हो गया है। भाई कहां हैं? युद्ध में मारा गया। ऐसे समय में हनुमान काम आयें। हनुमान संजीवनी बुटी लाने के लिए गयें, लेकिन उनको कन्फ्युजन हुआ की, संजीवनी बुटी कौनसी है? तो दो बाते हुई, पहली हुई, जिज्ञासा, दुसरी हुई धैर्य और तिसरी हुई आपको क्राफ्ट करने वाले लोगों में, आप लिडरशीप डेव्हलप करें। आपके अंदर नेतृत्व की क्षमता डेव्हलप हो और नेतृत्व की क्षमता का शिक्षा से कोई मतलब नहीं हैं।

भगवान राम विषम परिस्थिीती यों मे भी नीति सम्मत रहे। वे दयालु और सभी के दोस्त थे। वे एक बेहतर प्रबंधक और सभी रिश्तें में आदर्श थे। आदर्श राजा थे। उन्होंने मानवीय मर्यादा का पालन करते हुए सुखी और जागृत राज्य की स्थापना की!