तेलों का इस्तेमाल केवल खाने तक ही सीमित हीं हैं, बल्कि मालिश, आयुर्वेदिक उपचार व कई रोगों को नष्ट करने में किया जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है, ‘धृताद आठ गुण तेलम नत भक्षणात्’ अर्थात, घी खाने के स्थान पर मालिश करने से आठ गुना अधिक लाभ होता है। तेलों के सेवन से शरीर सुंदर, सुडौल व स्वस्थ बनता है। भोजन में तेल या घी का प्रयोग नहीं करने से शरीर में सूखापन आ जाता है। खाने की सामग्री की स्वदिष्टता व पौष्टिकता में कमी आ जाती है।
सरसों का तेल
खाने में सरसों का तेल तो उपयोगी होता ही हैं। सरसों के तेल का आचार अति स्वादिष्ट लगता है। नियमितरूप से सरसों का तेल सेवन करने वालों को दिल के रोग कम होते हैं। सरसों का तेल नियमीत बालों में लगाने से बाल हमेशा काले रहते हैं। जाडे के दिनों में सरसों के तेल की मालिश करना बहुत लाभदायक रहता है। नवजात शिशु को धूप में लिटाकर मालिश करना उसे स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट बनाता है। प्रसूता की भी इसी तेल से मालिश करनी चाहिए। सरसों के तेल की मालिश से रक्तसंचार बढता है। पैरों के तलवों में लगाने से अच्छी नींद आती है। नेत्र ज्योति बढती है। सरसों के तेल में नमक मिलाकर मंजन करने से दांत स्वस्थ व स्वच्छ रहते हैं। सरसों के तेल को गुनगुना कर कान में डालना भी अच्छा रहता है। इसके तेल में कपूर डालकर लगाने से खाज व चर्म रोगों से राहत मिलती है।
मूंगफली का तेल
जाडे के दिनों में मूंगफली का तेल लाभदायक होता है। यह खाने में स्वादिष्ट और पचने में हल्का होता है। यह शरीर के लिए हानिप्रद एल. डी. एल. कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। हृदय रोगियों के लिए लाभप्रद है। आज भी मूंगफली के तेल का नमकीन ही पसंद किया जाता है। इसमें विटामीन बी1, बी2 तथा विटामिन-ई प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।
नारियल का तेल
बालों के लिए नारियल का तेल सबसे अच्छा माना गया है। इससे बाल घने, चिकने व मुलायम होते हैं। नारियल के तेल में विटामिन-ई पाया जाता है। नारियल के तेल में कपूर, गंधक मिलाकर लगाया जाए तो चर्म रोग में लाभ होता है। कपूरयुक्त नारियल का तेल तो त्वचा पर लगाना बहुत ही लाभदायक होता है। जिन लोगों को खुजली की शिकायत है, तो उन्हें कपूरयुक्त तेल की मालिश, नियमित करनी चाहीए। जले हुए अंग पर तत्काल नारियल का तेल लगाना चाहिए। इससे त्वचा पर जलने का निशान नहीं रहता है।
तिल का तेल
जाडे के दिनों में तिल का तेल बहुत लाभदायक है। काफी समय पूर्व जब सोयाबिन के तेल का प्रचलन कम था,तब तिल का तेल बहुत काम में लिया जाता था। यह बहुत ही पौष्टिक होता है। यह मस्तिष्क की दुर्बलता दूर करने में बेजोड है। इसके तेल में विटामिन ए व ई भरपूर होता है।
अलसी का तेल
हाडोती क्षेत्र में अलसी का तेल बहुत ही प्रचलित है। कोटा (राजस्थान) में तो आज भी अलसी के तेल में नकमीन बनाया जाता है। इसके तेल में विटामिन-ई पाया जाता है। आग से जलने पर इसके तेल का फोहा लगाने से जलन और दर्द में आराम मिलता है। इसका सेवन, वात, कफ, खांसी एवं नेत्र रोगों में लाभकारी है। रात को सोते समय अलसी का तेल काजल की तरह आंखों में लगाने से नेत्ररोग दूर होते हैं। अलसी के बीजों को नियमित रूप से खाने से कैंसर, हृदय रोग, डायबेटीज, जोडों का दर्द, मोटापा, त्वचा सम्बन्धी रोग, पथरी, सर्दी, जुकाम, खांसी, कब्ज व मानसिक रोगों में लाभप्रद हैं।
रांई का तेल
जाडे के दिनों में बच्चों को रांई के तेल की मालिश करने से निमोनिया व सर्दी के अन्य रोगों में लाभ होता है। रांई के तेल में विटामिन-ई पाया जाता है। यह वात विकार और चर्म रोगों को दूर करने वाला होता है। रांई के तेल की मालिश कर कुछ देर धूप में रहें। इसकी नियमित मालिश से बालों सम्बन्धी बीमारीयों में लाभ पहुँचता है।
बादाम का तेल
शारीरिक एवं मानसिक थकान को दूर करने में बादाम का तेल बेजोड है। यह तनाव, चिडचिडापन तथा गुस्से से छुटकारा दिलाता है। बादाम के तेल की नियमित मालिश करने से त्वचा, स्वस्थ व कांतिमय बनती है तथा प्राकृतिक चमक कायम रहती है। आंखों पर काले धब्बे होने पर बादाम के तेल में थोडा सा शहद मिलाकर रात्रि में सोते समय आँखों के चारों तरफ धीरे-धीरे लगाये,कालापन दूर हो जायेगा। मानसिक कमजोरी होने पर रात को सोते समय एक कप दूध में बादाम का तेल डालकर पीयें। कमर दर्द में बादाम के तेल की मालिश करने से दर्द में राहत मिलती है।
जैतून का तेल
साइंस ग्लासको युनिवर्सिटी में हुए एक शोध के अनुसार जैतून का तेल बाकी तेलों के मुकाबले दिल के लिए ज्यादा लाभदायक है। द अमेरीकन जनरल ऑफ क्लिनीकल न्युट्रीशन में इस तेल के फायदों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि, एक चम्मच तेल का सेवन दिल को अच्छा बनायें रख सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि, नियमित रूप से 40 दिन तक रोज एक चम्मच जैतुन का तेल खाने की चीजों में सही तरीके से प्रयोग किया जाये तो हार्ट अटैक से बचा जा सकता है।
एरंड तेल (केस्टर ऑयल)
शरीर से विष तुल्य हानिकारक द्रव्यों को बाहर निकालते हुएं, शरीर की रोगों से लढने की क्षमता बढा देता है। आमवात, संधिदोष, लकवा, कम्पवात, कमरदर्द एवं वात रोगों की अचूक औषधि है। 20 से 50 मिलीलीटर तक एरंड तेल की मात्रा को एक गिलास दूध में मिलाकर रात को सोते समय पीयें। यह कब्ज से छुटकारा दिलाता है। एरण्ड तेल वायुजनित रोगों का नाश करने के साथ-साथ त्वचा को कोमल और कांति प्रदान करता है। दिन में 2 बार मालिश करने से पैरों की बिमारीयों से छुटकारा मिलता है। शरीर के किसी भी अंग में दर्द होने पर एरण्ड के तेल की मालिश अचूक उपचार है। गाय के दूध के साथ एरण्ड के तेल की 5-7 बूंदे मिलाकर रोज सुबह पीने से वृषण वृद्धि रूक जाती है तथा अण्डकोष पुनः यथाकार में आ जाते हैं। छोटे बच्चों के पेट में दूध की गिल्टी बन जाने पर उसे बाहर निकालने के लिए एरण्ड का तेल उत्तम औषधि है।
सिर पर तेल की मालिश करने एवं तिल से बने खाद्य पदार्थों का नियमित रूप से सेवन करते रहने से बालों का समुचित विकास होता है। जोडों के दर्द में, तिल के तेल में थोडी सी सौंठ पावडर, एक चुटकी हींग मिलाकर गर्म करें व मालिश करें।
यह नवजात शिशुओं के लिए मालिश में काम आने वाला गुणकारी उपयोगी तेल है। शरीर में इसके तेल की मालिश सर्दी को दूर करने वाली, सूजन को मिटाने वाली, लकवा, गठिया और वात रोग के लिए हितकारी है।