विटामिन ऐसी चीज है, जिसके संबंधमें सही जानकारी हमें कम-से-कम है। सभी ने उसके बारेमें सुन तो रखा है, पर बहुत कम लोग-जिनमें वैज्ञानिक, चिकित्सक और पोषण-विशेषज्ञ भी सम्मिलित हैं - यह जानते हैं कि, विटामिन शरीर में कैसे काम करता है और क्या कर सकने में वह सक्षम है और क्या कर सकने में अक्षम है।
एक विख्यात वैज्ञानिक का कहना है कि, विटामिन ‘सी’ की बड़ी खुराकें लेने से जुकाम से मुक्ति पायी जा सकती है। पर, अमरिका के फूड एण्ड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशनका कहना है कि ‘इस दावे का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।’
सैन डियोगो-स्थित कैलिफोर्निया-विश्वविदयालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन के डाक्टर जेस थोने का तो दावा है कि ‘पूरक के रूप में विटामिन लेना पैसा पानीमें फेंकनेके समान है।’
पर, अलबामा विश्व-विदयालय के डाक्टर इमैनुएल चेरास्किन कहते हैं कि ‘अमरिका मे जिस प्रकार के भोजनका प्रचलन है, उससे अपेक्षित पोषण नहीं मिल पाता। इसलिए, पूरक के रूप में विटामिन जरूरी हैं।’
बात मात्र इतनी है कि, किस विचार वाले विशेषज्ञ की बात आप सुनते हैं। व्यक्ति चाहे जिस भी रोग से पीड़ित हो, एक दल बात इतनी बढा-चढा कर कहेगा कि मानो विटामिन सर्वरोगहर है। और, वह इस रूपमें उसका मूल्यांकन करेगा, जिस दिशामें चिकित्सक-समुदाय ने विचार करना ही छोड़ दिया है।
1906 में सर एफ. सी. हापसिने उस पदार्थ की खोज की, जिसकी उन्होंने ‘खादय का सहायक तत्त्व’ नाम दिया और 10 वर्षो बाद कैस्मीर फकने उसका नाम ‘विटामिन’ रखा।
इस संबंधमें नाना प्रकारके प्रश्न हैं- यथा, कुल कितने विटामिन है?कितनी मात्रा एक-एक विटामिनकी प्रतिदिन लेनी चाहिए? क्या किसी एक विटामिनको अपेक्षासे कहीं अधिक लेना सम्भव हैं? क्या विटामिन रोग-मुक्त करनेमें समर्थ है? क्या वे रोग से व्यक्तिको बचाये रख सकते हैं? क्या वे आयुवर्धन करने और जीवनको अधिक सुखी बनाने में अथवा व्यक्तिको अधिक शक्ति प्रदान करने में सक्षम है?
तथ्य मात्र इतना है कि, हर व्यक्तिको विटामिन की अपेक्षा है। किसी विटामिनोंकी कमी व्यक्तिको रूग्ण बना दे सकती है। अधिकांश खाद्य पदार्थोंमें कोई-न-कोई विटामिन है, और विटामिन अपना काम करे, इसके लिए हमें ठीक से भोजन करना चाहिए, कुछ निश्चित खनिज लवणों की आपूर्ति करनी चाहिए तथा व्यायाम करना चाहिए।
विटामिन ऐसा आवश्यक रासायनिक पदार्थ है, जिसे शरीर स्वतः नहीं पैदा कर सकता है। उसे बाहरी स्रोतोंसे ही पहुंचाना पड़ता है। पर, अकेले वह किसी प्रकार लाभकर नहीं सिद्ध हो सकता।
अपनी पुस्तक ‘नैचुरल फूड रिड्यूसिंग डायट’ में डाक्टर एमिल हेली, एम. डी. ने लिखा है कि,पाचनके चयापचय- संबंधी प्रक्रियामें खनिज लवण और विटामिन साथ-साथ सक्रिय होकर प्रोटिनको ऐसिडमें खण्डित करते हैं और ऊतकों को स्वस्थ रखते हैं।
उदाहरण के लिए, विटामिन ‘सी’ और लौह से पूर्ण लाभ के लिए ताम्र अत्यावश्यक है। फास्फोरस, कैल्शियम और विटामिन ‘डी’ मिलकर ह्रियों और दांतों की बनावटके स्वास्थ्यमें सहायक होते हैं। हैली ने कहा है कि ‘शरीर में आत्मसात होने के लिए, ये तीनों पदार्थ परस्पर एक-दूसरे पर आश्रित है।’
अतः मात्र एक विटामिनसे व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। विटामिन चाहे कैप्सूल रूप में लिये जायें या भोजनके रूपमें, उनके ठीक चयापचय के लिए कुछ अन्य रसायनों और खनिज लवणों की अपेक्षा रहती है। भले ही कोई बड़ी मात्रा में कोई एक निश्चित विटामिन ले, जिससे बड़ा प्रतिफल अपेक्षित हो, पर, यदि अपेक्षित खनिज लवणका अभाव व्यक्ति में है, तो उसे नगण्य लाभ मिलेगा।
यद्यपि यह निश्चित है कि किसी निश्चित विटामिनके अभाव मे व्यक्ति किसी खास रोग से ग्रस्त हो जा सकता है, पर इस बात का प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि उस विटामिनकी अतिरिक्त स्तिथिसे मुक्ति मिल जायेगी।
कुछ लोगों का यह दावा है कि अधिक मात्रा में विटामिन ‘इ’ लेने से व्यक्तिमें कामशक्ति बड जायेगी, हृदय के दौरे न पड़ेगे और वृद्धावस्था आनेका क्रम धीमा हो जायेगा| पर, यह धारणा सर्वथा भ्रामक है।