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क्या है यह शिवाम्बु चिकित्सा पद्धती ?


क्या है यह शिवाम्बु चिकित्सा पद्धती ?

स्वास्थ्य प्राप्ति एवं व्याधी से मुक्ती के लिए मनुष्यों को ज्ञात ऐसी स्वमूत्र उपचार पद्धती एक अत्यंत प्राचीन उपचार पद्धती है। इस उपचार पद्धती का उपयोग दुनिया में आदिकाल से होता आ रहा है। भारत से इस पद्धती को मशिवाम्बु चिकित्साफ इस नाम से संबोधित किया गया है। तो अन्य जगह इसे अ‍ॅटो युरिन थेरपी, अथवा युरिन थेरपी या युरोपॅथी के नाम से जाना जाता है।

शिवाम्बु यह एक संस्कृत शब्द है। जो शिव और अम्बु इन दो शब्दों के संयोग से बना है। शिव का अर्थ है पवित्र, मंगलदायी, कल्याणकारी; और अम्बु का अर्थ है पानी, जल। हमारे ही शरीर से बहने वाले पानी को अर्थात स्वमूत्र को शिवाम्बु कहा जाता है। जो जीवनदायी, कल्याणकारी जल है। अर्थात स्वमूत्र का विभिन्न प्रकार से उपयोग करके, की जाने वाली उपचार पद्धती को शिवाम्बु चिकित्सा कहा जाता है।

शिवाम्बु चिकित्सा के प्रवर्तक स्वयं भगवान शंकर है। क्योंकि अनेक तंत्रशास्त्र के ग्रंथो में शिवाम्बु चिकित्सा का उल्लेख मिलता है। डामर तंत्र ग्रंथ में माता पार्वती और भगवान शंकर के बीच संवादरूप में शिवाम्बु कल्पविधी नाम का अलग खंड है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इस चिकित्सा पद्धती को स्वमूत्र चिकित्सा अथवा नरमूत्र चिकित्सा ऐसा कहा गया है। तो योगशास्त्र के ग्रंथों में इस चिकित्सा को आमरोली कहा जाता है।

भारतीय संस्कृति में लिंग का पानी अर्थात शिवलिंग से आनेवाला पानी, तीर्थ अथवा पवित्र समझा जाता है। हमें मालूम है की, जो पिंड में वह ब्रह्मांंड में। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवं आकाश इन पंचमहाभुतों से पिंड अर्थात हमारा शरीर बना हुआ है। पिंड अर्थात लिंग का पानी अन्य कुछ न होकर हमारे शरीर से बहनेवाला पानी है। जो शुद्ध और पवित्र है। हमारे शरीर से बहनेवाला पानी दुसरा-तिसरा कुछ न होकर, हमारा मूत्र ही है। यानी के शिवाम्बु अर्थात स्वमूत्र ही है।

आज भारतवर्ष में जितने लोग शिवाम्बु उपचार पद्धती को जानते हैं, उससे कईं अधिक मात्रा में विश्‍वभर के लोग इस मऑटो युरिन थेरपीफ का उपयोग करते हैं। यह सभी देशों में प्रचलित वैश्‍विक पद्धती है।