शिवाम्बु चिकित्सा की आवश्यकता क्यों है ?
शरीरम्
खलु धर्म साधनं ।
अर्थात
हमारे जीवन में हमें जो कुछ करना है,
उसके लिए शरीर एक माध्यम है,
एक साधन है।
धर्मार्थकाम
मोक्षाणं आरोग्य मुलमथम् - जीवन में धर्म,
अर्थ, काम एवं
मोक्ष इन उद्देशों की पूर्ती हेतु हमारा शरीर अर्थात हमारा साधन स्वास्थ्यसंपन्न
होना प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। क्योंकि स्वास्थ्य नहीं होगा तो हम कुछ भी
नहीं कर सकते।
मस्वास्थ्यफ
ही जीवन का असली गहना है। इसी कारण आज सभी को स्वास्थ्य चाहिए। परन्तु आज आधुनिक
युग में हमें यह दिखाई देता है की,
समाज में विभिन्न बीमारीयों कि संख्या बढती जा रही है। मधुमेह, हृदयविकार, उच्च रक्तचाप, श्वसनरोग, दमा, अॅलर्जी, त्वचाविकार, अल्सर, कैंसर, गाठिया, संधिवात, पक्षघात, सोरायसिस, बद्धकोष्ठता, पाचन विकार, थायरॉईड, मोटापा ऐसे अनेक
मनोकायिक बीमारीयों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। इसका कारण यह है कि, मनुष्य प्रगती एवं
विकास के नाम पर प्रकृति से दूर जा रहा है। प्रकृती नियमों के खिलाफ जीवन जी रहा
है।
उसी
प्रकार इन बीमारीयों के निस्तारण हेतु जो वैद्यकीय प्रणालियाँ प्रचलित हैं, वे कृत्रिम एवं
कमजोर सिद्ध हो रही हैं। एक ओर आज की अनियंत्रित एवं दिशाहीन औद्योगिक क्रान्ति के
कारण हमारे चारों ओर की प्रकृति,
खाद्यवस्तुएँ, पानी एवं
बाह्य वातावरण दूषित हुआ है। तो दूसरी ओर प्रत्येक छोटी-मोटी बीमारीयों के लिए
प्रयोग की जानेवाली दवाओं के कारण अन्तरिक प्रतिकार क्षमता कमजोर एवं पराश्रित हो
रही है।
आज सभी
बीमारीयों के लिए उपयोग में लाई जानेवाली दवाएँ अस्थायी असर दिखानेवाली हैं। उनके
साईड इफेक्टस् भी अत्यंत भयंकर है। साथ ही इन दवाओं की किमतें भी दिनोदिन बढती जा
रही हैं।
2. शिवाम्बु
उपचार पद्धती सबसे सस्ती, मस्त, सुलभ और सुरक्षित है।
यह समाज के सभी सर्वसामान्य के लिए एक वरदान है। असाध्य बीमारीयों पर जहाँ दवाईयाँ
कमजोर सिद्ध हो रही हैं, वही हमारे
ही शरीरद्वारा बनाई गयी शिवाम्बु यह एक नि:शुल्क दवा है।